साईं अनुयायिओं की शंकाओं की समाधान श्रंखला -
यदि इस बात के शास्त्रीय अभिप्राय को समझे बिना ही इसके अर्थ यों ही कुतर्क बश अपने अपने हिसाब से निकाले गए तब तो बहुत भारी समस्या तैयार हो जाएगी आखिर जमीन पर कैसे कहाँ रखे जाएँगे पैर, कैसे होगा मल मूत्र विसर्जन, कैसे कुछ खाया पिया जाएगा ? जब हर कण में भगवान को ही मान लिया जाएगा ? इसका मतलब ये भी नहीं है कि हर जगह भगवान नहीं होते हैं केवल समझने समझाने के लिए कह दिया गया है यदि ऐसा होता तो प्रह्लाद जी ने खम्भे से कैसे प्रकट कर दिया था और यदि वहाँ पहले से थे तो पहले ही क्यों नहीं प्रकट हो गए क्यों उन्हें दण्डित होते रहने दिया !इसीलिए रामायण में लिखा गया है -
जे गावहिं यह चरित सँवारे।ते यही ताल चतुर रखवारे॥see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
कण कण में भगवान कैसे? जैसे-
कहा जाता है कि धरती के अंदर सब जगह पानी है इसका मतलब क्या हुआ जमीन में कहीं भी मुख रगड़ने से प्यास बुझ जाएगी क्या ? जैसे धरती से पानी निकालने के लिए कुआँ नल आदि की व्यवस्था करनी पड़ती है उसी प्रकार से भगवान को कहीं भी प्रकट करने के लिए साधना करनी पड़ती है या मूर्तियों में शास्त्रीय नियमानुशार प्राण प्रतिष्ठा आदि करनी पड़ती है । see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
कण कण में भगवान कैसे? जैसे-
2. बिजली के तारों में कह दिया जाता है कि सब जगह करेंट है इसका मतलब यह तो नहीं है कि किसी तार में बल्ब का स्पर्श करा देने मात्र से क्या जल उठेगा बल्व !होल्डर बल्व आदि लगाने की प्रक्रिया रूपी साधना जैसे यहाँ करनी पड़ती है उसी प्रकार से भगवान को कहीं भी प्रकट करने के लिए साधना करनी पड़ती है या मूर्तियों में शास्त्रीय नियमानुशार प्राण प्रतिष्ठा आदि करनी पड़ती है। see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
कण कण में भगवान कैसे? जैसे-
3. यदि कण कण में भगवान हैं तो कण कण की नहीं केवल साईं की मूर्ति प्रतिष्ठा ही क्यों दूसरा कण कण की न तो प्रतिष्ठा हो सकती है और न ही उनका कोई मन्त्र है न पूजा विधि वो केवल कहने और बोलने के लिए है फिर साईं पूजा के लिए मन्त्रों एवं पूजा की विधि का आडम्बर क्यों ?see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
कण कण में भगवान कैसे? जैसे-
4. यह सच है कि साईं में भी भगवान है किन्तु साईं ही भगवान नहीं है दूसरी बात कण कण में जब भगवान मान ही लिया जाएगा फिर पूजा योग्य कण अलग से खोजने का विकल्प बचता ही कहाँ है फिर तो सब बराबर होते हैं क्या साईं क्या कोई और !फिर पूजा केवल साईं की ही क्यों ? फिर मूर्ति स्थापना की आवश्यकता ही क्यों ?see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका-साईं को मानने वाले देवी देवताओं को भी तो मानते हैं इसलिए साईं मूर्तियाँ मंदिरों में रख कर पूजने में गलत क्या है ?
समाधान - गलत केवल इतना है जैसे किसी घर की बहू यदि किसी और से भी प्रेम करने लगे और उस प्रेमी को उसी घर में रखना चाहे जिसमें वो पति के साथ रहती है और रोके जाने पर वो कहे कि मैं पति को भी मानती हूँ उसे भी मानती हूँ इसमें गलत क्या है!किसी की आस्था को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए और ये हमारी आस्था है कि मैं अपने प्रेमी को अपना भगवान समझती हूँ क्योंकि हमारा पति हमारी इच्छाओं का सम्मान उतना नहीं करता है जितना प्रेमी करता है ।इसलिए प्रेमी को भी मैं पति ही कहूँगी,और पति के साथ ही उसी कमरे में उसे भी रखूँगी जिसमें मैं पति के साथ रहती हूँ । पति और प्रेमी दोनों को साथ साथ पूजूँगी इसमें किसी को क्या आपत्ति !पूजना हमें है दो को पूजें कि चार को ये हमारी आस्था !हमें रोकने वाला कौन होता है ?
यही स्थिति यहाँ है साईं बाबा मनोकामनाएँ जल्दी पूरी कर देते हैं इसलिए उन्हें भी भगवान मानूँगा उन्हें भी भगवान की तरह पूजेंगे उन्हें भी भगवान के मंदिरों में ही बैठाएँगे ये हमारी आस्था हमें रोकने वाला कौन होता है ?क्या ये सब कुछ सही है ?see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - साईं को जिसे नहीं पूजना है मत पूजे औरों को तो पूजने दे !
समाधान - ये कोई बाप दादा की जमीन का हिस्सा नहीं है जो बाँट कर अपना अपना हिस्सा ले लिया जाएगा ! ये तो धर्म है बंधुओं ! ये अपने पूर्वजों ने हम सबको साथ साथ मिलकर मानने और मनाने के लिए बनाया है इसमें तो उसी तरह से चलना पड़ेगा जैसी परम्पराएँ पहले से प्रचलित हैं और यदि कुछ नया करना होगा तो शास्त्रीय मर्यादाओं में रहकर ही आपसी सहमति से करना पड़ेगा धर्म में मनमानी नहीं चल सकती ,अपनी सुविधानुशार चलने की छूट किसी भी धर्म में नहीं है फिर सनातन धर्म से ही ऐसी अपेक्षा क्यों ? यदि कर्तव्य पालन में छूट की बात स्वीकार की गई तो सारे अपराधी उन्मत्त हो जाएँगे वो भी कहेंगे कि तुझे चोरी,बलात्कार हत्या आदि नहीं करनी है मत कर मुझे तो करने दे ! ऐसे न तो धर्म चल पाएगा न समाज और न ही देश । हर किसी जगह नियम कुछ तो बनाने और मानने ही पड़ते हैं अन्यथा संविधान बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ती ? तन पर शासन सरकार का होता है मन पर शासन धर्म का होता है यदि तन के संविधान की आवश्यकता है तो मन के संविधान की क्यों नहीं ! अपराध करने वाले को संविधान सजा देता है वहीँ धर्म अपराधी को अपराध से मुक्ति हेतु प्रेरित करता है वैसे भी एकांत के अपराधों में धर्म सबसे अधिक कारगर सिद्ध हो सकता है इसलिए धर्म में मन मानी क्यों कि ' तू मत कर मुझे तो करने दे' इस मुझे के चक्कर में ही तो देश और समाज की दुर्दशा हो रही है परिवार टूट रहे हैं समाज विखर रहा है इसलिए मुझे क्यों हमें क्यों नहीं ?see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - पीपल और तुलसी की पूजा हो सकती है तो साईं की क्यों नहीं ?
समाधान - पीपल और तुलसी के पूजन का विधान शास्त्रों में है इसलिए उनकी पूजा विधि भी है आपने न पढ़ा हो तो मैं प्रमाण दे सकता हूँ किन्तु साईं का नाम ही शास्त्रों में नहीं है तो उनकी पूजा विधि होने का सवाल ही नहीं उठता फिर भी यदि आपने धर्म शास्त्रों में कहीं साईं पूजा का विधान पाया हो तो प्रमाण दे दीजिए !see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - साईं भक्ति सनातन का ही रूप है
समाधान -ये बात सनातन धर्म को जानने वाले शास्त्रीय ईमानदार विद्वान लोग नहीं कह सकते अन्यथा बताइए साईं की मूर्ति प्रतिष्ठा किन मन्त्रों से की जाएगी वो किस वेद में लिखे हैं और बिना मन्त्रों के प्रतिष्ठा कैसे की जा सकती है और बिना प्रतिष्ठा का मूर्ति पूजन सनातन धर्म का अंग कैसे हो गया ? आप प्रमाण दीजिए !see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - इस देश में साँपों की पूजा हो सकती है तो साईं की क्यों नहीं ?
समाधान - साँपों की तरह साईं को भी आप पूज सकते हैं वहाँ कोई समस्या ही नहीं हैं साँपों की तरह आप रोज दूध पिलाइए कौन रोक रहा है आपको !किन्तु समस्या साईं को भगवान बताने पर है !see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - साईं को इतने दिनों से पूजा जा रहा था तब क्यों नहीं रोका गया !
समाधान - तब संत और फकीर करके पूजना प्रारम्भ किया गया था इससे उतनी दिक्कत नहीं थी तमाम पीर फकीर पुजते थे एक और सही किन्तु समस्या तब हुई जब ये साईं को अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक भगवान बताने लगे !see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - साईं की मूर्ति मंदिरों में रखने के नुक्सान क्या हैं इससे समाज पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा ?
समाधान- और यदि साईं के नाम से धर्म शास्त्रविधि के पालन में किसी प्रकार का समझौता किया जाता है तो भविष्य में एक बहुत बड़ी समस्या ये पैदा होगी कि किसी भी धर्म संप्रदाय के लोग अपने अपने आस्था केंद्र मंदिरों में बनाने लगेंगें या जिसके सौ दो सौ अनुयायी होंगे वो उन्हें भगवान कहेगा और उसकी मूर्ति मंदिर में लगाएगा तो उसे कैसे और किस नियम से रोका जाएगा ? यदि आस्था के नाम पर उन्हें भी सह लिया गया तो वो आपस में लड़ लड़ कर मंदिरों को नर्क बना देंगे और समाप्त कर देंगे सनातन हिन्दू धर्म ! see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका- साईं को भगवान क्यों नहीं कहा जा सकता ?
समाधान -चूँकि भगवान नाम शास्त्रों में मिलता है इसलिए भगवान शब्द का प्रयोग करते समय शास्त्रीय नियमों की अनुमति लेनी ही होगी !भगवान शब्द के साथ शास्त्रीय नियमों का पालन होना ही चाहिए ! जिसने कम्प्यूटर बनाया उसने उसका नाम कम्प्यूटर रखा तो किसी भी भाषा में जाने के बाद उसे कहा कम्प्यूटर ही जाएगा ऐसा नहीं होगा कि कोई जूता बना कर उसका नाम कम्प्यूटर रख देगा और यदि रख देगा तो वही होगा जो यहाँ हो रहा है !see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - अपनी अपनी आस्था के अनुशार किसी को भगवान क्यों नहीं बनाया जा सकता ?
समाधान- आस्था कहने सुनने के लिए है उसमें भगवान मान कर मूर्तियाँ प्रतिष्ठित नहीं हो सकतीं ! आस्थापूर्वक कोई किसी को कह सकता है कि हमारे लिए प्रधानमंत्री तुम्हीं हो किन्तु प्रधानमंत्री तो बड़ी बात है विधायक बनने के लिए भी संवैधानिक नियमों का पालन करना होता है । इसी प्रकार से विधायक, सांसद, मंत्री ,मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री ,राष्ट्रपति आदि नाम संविधान में स्वीकार किए गए हैं और इन्हें बनने बनाने के नियम भी संविधान में ही दिए गए हैं तो इन पदों पर पहुँचने के लिए उन नियमों का पालन करना होगा !अन्यथा नियम विरुद्ध जाकर हम अपनी केवल आस्था और श्रद्धा के अनुशार किसी को सांसद भी नहीं बना सकते तो शास्त्रीय नियम विरुद्ध कोई भगवान कैसे बन जाएगा ?अंधेर है क्या ?see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - कुछ लोग यदि श्री राम को भगवान बना सकते हैं तो कुछ लोग किसी और को क्यों नहीं ?
समाधान- श्री राम को भगवान बनाया नहीं गया था वो भगवान थे बनाने और होने में अंतर होता है जो चीज बनाई जाती है वो नष्ट अवश्य होती है आज हो या हजार वर्ष बाद !किन्तु श्री राम लाखों वर्ष बाद भी हैं ये सिद्ध करता है कि वो भगवान बनाए नहीं गए थे अपितु थे ! वैसे भी भगवान के अवतार तो निश्चित होते हैं इसलिए उनकी प्रतीक्षा होती है जैसे आगे कल्कि अवतार होगा अभी से सभी को पता है। तो उन्हें भगवान बनाने या न बनाने का प्रश्न कैसा !see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - जैसे श्री राम पैदा हुए थे वैसे ही साईं ,जैसा जीवन श्री राम का था वैसा साईं का फिर साईं और श्रीराम में इतना अंतर क्यों ?
समाधान-सबकुछ एक जैसा दिखाई देने पर भी जैसे मोची और हार्टसर्जन में आकाश पाताल का अंतर होता है हार्टसर्जरी होते देखकर कोई मोची सोच ले कि चमड़ा काटने और सिलने का काम तो हमें भी आता है मैं हार्टसर्जन क्यों नहीं ! और कुछ लोगों से अपने समर्थन में नारे लगवाने लगे कि मैं तो हार्टसर्जन हूँ तो क्या वो हार्टसर्जन मान लिया जाएगा ?see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका - बहुत से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य लोग भी साईं को मानते हैं इसलिए ये कैसे कहा जा सकता है कि वो लोग शास्त्र को नहीं जानते होंगें ?
समाधान - ' साईं मन्यते इति शूद्रः'
ब्राह्मण केवल जाति से ही नहीं अपितु कर्म से भी होता है कोई भी शास्त्रीय ज्ञान और कर्मों से भ्रष्ट व्यक्ति ब्राह्मण किस बात का ?
'ब्रह्म जानातीति ब्रह्मणः' अर्थात ब्रह्म को जानने और ब्रह्म को मानने वाले को शास्त्रों में ब्राह्मण (शास्त्रों को जानने वाला ) बतलाया गया है । ' साईं मन्यते इति शूद्रः' अर्थात साईं को मानने वाले को शास्त्र न जानने वाला शूद्र कहा जाता है ऐसे लोग शास्त्र विमुख और शास्त्रज्ञों को गाली देने वाले होते हैं (यहाँ जाति जन्म से नहीं कर्म और गुणों से ली गई है ) । यही कारण है कि साईं को मानने वाले सभी जातियों के लोग शास्त्रीय ज्ञान से शून्य होते हैं भले ही उनका जन्म किसी ब्राह्मण स्त्री से ही क्यों न हुआ हो किन्तु ऐसे सभी साईं अनुयायी लोग पहली बात तो किसी शास्त्रीय बहस में भाग नहीं लेते हैं और यदि लिया भी तो वहाँ जाकर गाली ही देते हैं उत्तेजना पैदा करते हैं क्योंकि गाली शास्त्र का ज्ञान रखना और चिलम पीना एवं सनातन हिन्दू धर्म के विरुद्ध आचरण करना इनका मुख्य कर्तव्य माना जाता है !वो बात अलग है कि चिलम कुछ लोग पीते हों कुछ न भी पीते हों किन्तु साईं चिलम पीते थे ऐसा सुना जाता है।see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका -आखिर साईं को साईंराम क्यों कहते हैं ?
समाधान- मैंने सुना है कि इनका वास्तविक नाम साईं बाबा भी नहीं था कुछ लोग इन्हें साईं बाबा कहने लगे थे किन्तु इन्हें साईं राम कहने के कोई प्रमाण ही नहीं मिलते !
वस्तुतः साईं धर्मी भी साईं पर पूरा भरोसा नहीं करते इसीलिए पहले इन्हें वो साईं बाबा कहते थे किंतु जब इन्हें भ्रम हुआ कि बुड्ढे का भरोसा जा इसी जिंदगी में नहीं है तो मरने के बाद तो यमराज के कटघरे में जैसे हम खड़े होंगे वैसे ही बुढ़ऊ बाबा भी वहाँ जाकर खड़े हो जाएँगे वहाँ तो न इनकी चलेगी और न ही हमारी वहाँ तो सीधे श्री राम जी की ही चलेगी उनकी ही हमें भी माननी पड़ेगी और उन्हीं की साईं बुढ़ऊ को भी माननी पड़ेगी इसलिए केवल इनके चक्कर में पड़कर जिंदगी क्यों बर्बाद करनी हमें तो भरोसा श्री राम जी का ही है तब उन लोगों ने चाहते हुए भी बहम के कारण साईं को छोड़ा तो नहीं किन्तु अपने प्यारे प्रभु श्री राम का नाम भी साथ जोड़ लिया अन्यथा यदि ऐसा न होता तो साँय(साईं) साँय(साईं) ही करते रहते !इनके साथ श्री राम का नाम क्यों लगाते !see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
शंका -साईं भगवान क्यों नहीं हो सकते ?जब बाल्मीकि डाकू थे उनकी मान्य हो गई तो साईं में क्यों आपत्ति हो रही है ?
समाधान - बाल्मीकि न तो डाकू थे और न ही उनका नाम बाल्मीकि था वो तो अग्नि शर्मा नाम के बहुत बड़े विद्वान ब्राह्मण थे !
अग्नि शर्मा जी के पिता जी बहुत बड़े विद्वान एवं तपस्वी ब्राह्मण थे वो जंगल में अपने परिवार के साथ रहते थे उन्होंने अपने पुत्र अग्नि शर्मा को भी धर्म शास्त्रों का अभ्यास करवा रखा था और पिता पुत्र नित्य तपस्या में लीन रहते थे एक बार जंगल में खूब सूखा पड़ा वर्षा के अभाव में त्राहि त्राहि मचने लगी यह प्रकृति पीड़ा पिता जी तो सह गए किन्तु पुत्र अग्नि शर्मा भड़भड़ा उठे ! भूख से व्याकुलता के कारण तपस्या में मन न लगे इसलिए इधर उधर घूमने भटकने लगे इसी भटकाव में एक दिन कुछ डाकुओं से भेंट हुई ,डाकुओं को अग्नि शर्मा ने अपनी परेशानी बताई उन्होंने अग्निशर्मा को भोजन कराया ! अग्नि शर्मा प्रसन्न होकर पूछने लगे कि हम लोगों को ये भोजन क्यों नहीं मिल पा रहा है तो उन्होंने ने बताया कि तपस्वी लोग खाद्य सामग्रियों का संग्रह नहीं करते हैं चूँकि आपके पिता जी तपस्वी हैं इसलिए उनके पास भोजन व्यवस्था नहीं है गृहस्थों के पास अन्न का संग्रह होता है किन्तु वो बाजार में पैसे लेकर बेचते हैं तो अग्नि शर्मा ने पूछा कि पैसे कहाँ मिलते हैं तो उन्होंने न बताया कि मेरे साथ रहो तो भोजन भी मिलेगा और धन भी , ऐसे अग्नि शर्मा उनके कुसंग में पड़ गए जब सूखे का समय बीत गया तब वापस अपने पिता के पास आए पिता को जब पता लगा कि ये अभी तक कुसंग में थे तो उन्होंने प्रायश्चित्त स्वरूप तपस्या करने को कहा । यह सुनकर अग्निशर्मा ने अपने लुटेरे जीवन से अपने को फिर से उलटा और फिर नाम जप करते हुए तपस्या में प्रवृत्त हो गए !वहाँ ऐसी भयंकर तपस्या की कि उनके शरीर में दीमक लग गई उससे बाँबी बन गई उसी दीमक के ढेर बाँबी को संस्कृत में 'बल्मीक' कहते हैं और बल्मीक से प्रकट होने के कारण आदि 'अच' की वृद्धि हो गई और उन्हें वाल्मीकि कहा जाने लगा !see more http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_5398.html
साईं को भगवान बनाने के लिए सनातन धर्म में अभी कोई वैकेंसी खाली नहीं है !
इसलिए उचित यही होगा कि साईं को सनातनधर्मियों के मत्थे न मढ़ा जाए इन्हें
उन धर्मों पर थोपा जाए जिनके यहाँ आस्था प्रतीक ईश्वर एक या दो होते हों
या जिनके यहाँ भगवानों की शार्टेज हो ,अर्थात पूजा स्थल खाली पड़े हों
अर्थात कोई मूर्तियाँ ही न हों , उन धर्मों को आगे आकर साईं सम्प्रदाय की
इच्छा पूरी करने के लिए उदारता दिखाते हुए साईं को भगवान रूप में गोद ले
लेना चाहिए और पूरी कर देनी चाहिए उनकी भगवान बनने बनाने की अभिलाषा !इससे
बिना मूर्तियों के सूने पड़े पूजास्थलों में भी रौनक हो जाएगी और साईं
वालों को भी भगदड़ काटने के लिए या लड्डू बनाने बेचने के लिए खुली जगह मिल
जाएगी ! रूपए या सोना चाँदी आदि धन दौलत रखने के लिए यहाँ खुले गोदाम बनाए
जा सकते हैं वहाँ ! इन मंदिरों में साईं की पांच बार की नमाज आरतियों
में लोगों को समस्या हो रही है क्योंकि यहाँ देवी देवता भी हैं उन्हें
दिखा दिखा कर साईं की आरतियाँ होती रहती हैं रही बात दूसरे धर्म स्थलों की
वहाँ साईं अपनी आरती चाहें पचास बार करावें या दिन भर तेल मालिश करावें
,सैम्पू लगा लगाकर दिन भर नहाएँ किसी को कोई समस्या ही नहीं होगी क्योंकि
वहाँ आरती पूजा में साईं का किसी से कोई कम्पटीशन तो रहेगा नहीं !
साईं का भगवानत्व क्या है ?
यदि हम अपने माता पिता नहीं बना सकते तो हम अपना परमपिता कैसे बना सकते हैं !इसी विषय में पढ़ें हमारे ये लेख भी -
एक अनाम फकीर को साईं और भगवान कहने के पीछे विधर्मियों की कोई चाल तो नहीं !
साईं नाम का षड्यंत्र कहीं सनातन धर्म को छिन्न भिन्न करने की साजिश तो नहीं है ?
एक अनाम फकीर को कोई नाम देना जरूरी था क्या ? फिर उस फकीर का झूठ मूठ का चरित लिखवाने की क्या जरूरत थी जब उसके बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं था ,फिर see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_11.html
साईं नाम का षड्यंत्र कहीं सनातन धर्म को छिन्न भिन्न करने की साजिश तो नहीं है ?
एक अनाम फकीर को कोई नाम देना जरूरी था क्या ? फिर उस फकीर का झूठ मूठ का चरित लिखवाने की क्या जरूरत थी जब उसके बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं था ,फिर see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_11.html
साईं भक्तों की आस्था के साथ खिलवाड़ ठीक है क्या ??
प्रश्न - साईं भक्तों की आस्था को को चोट पहुँचाना ठीक है क्या ?
उत्तर
-बिलकुल नहीं ,किसी की आस्था को चोट पहुँचाना जघन्यतम अपराध है बशर्ते
उसकी आस्था से किसी और की आस्था आहत न होती हो तो ! जैसे किसी बाप के चार
बेटे हों उनमें सेsee more...http://bharatjagrana.blogspot.com/2014/07/blog-post_8.html
यदि साईं इतने ही चमत्कारी थे तो आजादी की लड़ाई के समय मुख छिपाकर क्यों बैठे रहे ? see more .... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_5.html
साईं समर्थक कोर्ट में केस करें या रोडों पर क्लेश किन्तु धर्मशांकर्य बर्दाश्त नहीं किया जाएगा !see more .... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_5253.html
सनातन धर्मी हिन्दुओं से निवेदन है कि इसी विषय में जरूर पढ़ें हमारे अन्य लेख भी -
बूढ़ेसाईं को हिन्दू मन्दिरों में क्यों साईं संप्रदाय के वृद्धाश्रमों में क्यों न पूजा जाए ?
जिन मंदिरों में बूढ़ेसाईं ही पुजेंगे उन्हें मंदिर ही क्यों वृद्धाश्रम
क्यों न बोला जाए ! और साईंसम्प्रदाय नाम से नया सम्प्रदाय क्यों न चला
लिया जाए ! see more....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_28.html
साईं समर्थकों को सनातन धर्मी हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक षड्यंत्र नहीं करना चाहिए !
साईं समर्थकों को सनातन धर्मी हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक षड्यंत्र नहीं करना चाहिए !
मुझे साईं बाबा से कोई शिकायत नहीं है वो संत या साधक जो भी रहे हों उस रूप में उनका सम्मान है किन्तु भगवान के रूप में स्थापित करने की कोई साजिश कतई स्वीकार्य नहीं होगी see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_26.html
- साईं समर्थक कोर्ट में केस करें या रोडों पर क्लेश किन्तु धर्मशांकर्य बर्दाश्त नहीं किया जाएगा !
मोदी जी सनातन धर्म और शंकराचार्यों के गौरव का न केवल सम्मान करते हैं अपितु उनका जीवन स्वयं में आध्यात्मिक है उचित होगा कि उन्हें इस विवाद से दूर रखा जाए !उनके see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_5253.html
- श्रद्धा सबूरी का सन्देश देने वाले साईं बाबा जी के चमचों ने सनातन धर्मियों के स्वाभिमान जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद जी से माफी माँगने की माँग की है क्या ये हिन्दुओं को सह जाना चाहिए ?
जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद जी ने धर्म रक्षा सम्बन्धी शास्त्रसम्मत बयान दिया है उसे विवादित बयान कहना ठीक नहीं होगा !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_25.html
साईंबाबा को भगवान ही क्यों मान लिया जाए अल्ला और ईसामसीह क्यों नहीं ? seemore...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_24.html
साईंबाबा की मूर्तियों को केवल मंदिरों में ही क्यों रखा जाए !गुरूद्वारे गिरिजाघर और मस्जिदों में क्यों नहीं ?जब साईं बाबा के किसी आचार व्यवहार से ये सिद्ध ही नहीं होता है कि साईं बाबा सनातन धर्मी हिन्दू थे तो फिर केवल हिन्दुओं के मत्थे ही क्यों मढ़ा जा रहा है उन्हें ? अगर साईंबाबा see more.....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/blog-post_24.html
साईंराम कांशीराम आशाराम तीनों के चित्र प्रचारित किए गए न कि चरित्र ! आखिर क्यों ?see more... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_3143.html
साईंराम कांशीराम आशाराम तीनों की मूर्तियाँ कैलेंडर आदि सब कुछ चेलों ने पुजवाए और फिर चेलों के आ
- साईं बाबा के विषय में शंकाराचार्य जी के बयान का विरोध क्यों ?
धर्म के विषय में यदि कुछ लोग अपने शाही इमाम की बात को प्रमाण मानते हैं
और कुछ लोग अपने पोप की बात को प्रमाण मानते हैं तो हिन्दू अपने
शंकाराचार्य की बात को प्रमाण न मानकर क्या साईं बाबा के चमचों को प्रमाण
मान लें जिन्होंने वेद पढ़े न पुराण और न ही धर्मशास्त्र !जिनका सब कुछ मन
गढंत है ऐसे अँगूठाटेक धार्मिक लोग ही बचे हैं अब हमारे धर्म का निर्णय
करने को क्या ?see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/06/saain.html
- साईंबाबा को भगवान बताने वालों को शास्त्रार्थ की खुली चुनौती !
साईं के नाम पर केवल सनातन धर्म की ही छीछालेदर क्यों की जा रही है किसी मस्जिद में साईं की मूर्ति नहीं है किसी गुरुद्वारे में साईं की मूर्ति नहीं है किसी चर्च में साईं की मूर्ति नहीं है फिर साईं बाबा का सभी धर्मों में सम्मान मान लिया जाए !see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2014/06/blog-post_23.html
- देवता कभी बूढ़े नहीं होते किन्तु साईं तो बुड्ढे हैं ये देवता कैसे हो गए ?see more … http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_9250.html
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