शनिवार, 9 जनवरी 2016

लड़कियों के फैशन पर ही आपत्ति क्यों ?लड़कों का भी बंद हो ऊटपटांग फैशन !

 श्रृंगार का अर्थ फैशन तो नहीं होता फिर फैशन है क्या ?     
   शरीर के श्रृंगार से प्रकट होती है मन की सेक्स भावना !  जवान  होने की अपेक्षा जवान दिखने की भावना ज्यादा खतरनाक होती है !
      जैसा श्रृंगार वैसी सेक्स  इच्छा  ! जिन्हें नए नए सेक्स की तलाश नहीं होती वे सहज और सामान्य श्रृंगार ही पसंद करते हैं क्योंकि उनके पास सेक्स वैकेंसी खाली ही नहीं होती है अधिक श्रृंगार या भड़कीली वेषभूषा से बिकाऊपन सिद्ध होता है बिकाऊपन परखते ही ग्राहक मडराने लगते हैं आसपास !
   हलवाई की दूकान पर लोग मिठाइयों का भाव पूछते हैं वस्तुतः शीशे का काउंटर हलवाई बनवाता ही इसीलिए है ताकि लोग देखें और भाव पूछें अन्यथा वो लकड़ी का काऊंटर भी तो बनवा सकता था किंतु उससे मिठाइयाँ किसी को दिखाई ही नहीं पड़तीं और जब दिखाई ही नहीं पड़ेंगी तो ग्राहक कैसे आएँगे !इससे एक बात तो स्पष्ट होती ही है कि विशेष रूप से दिखाई वही चीज जाती है जिसके कस्टमर चाहिए !
    इसी प्रकार से आजकल फैशन के नाम पर लोग शरीर नंगा करने में लगे हैं कुछ किस्तों में नंगा हो रहे हैं तो कुछ थोक में किंतु भारत वर्ष में अभी उतना एडवांस समय नहीं आया है कि लोग थोक में .... !किंतु फैशन के नाम पर किस्तों में नंगा  होना तो यहाँ भी प्रारम्भ हो गया है । जिन अंगों को देखने  दिखाने से सेक्स भड़कता हो उनके प्रदर्शन का उद्देश्य ही उसकी सेक्सप्रियता प्रदर्शित करता है । किसी को यदि पता लग जाए कि सामने वाले को फला चीज पसंद है तो उसे  खुश करने की इच्छा रखने वाले लोग ऐसे लोगों को वही चीज परोसना चाहेंगे !इसी प्रकार से नग्न या अर्द्ध नग्न लोगों को खुश करने के लिए बहुतों को रोमांटिक होते देखा जाता है ।

     ब्यूटीपार्लर वाले तो लीप पोत कर भेज देते हैं उससे हकीकत में सुंदरता बढ़े या न बढ़े किंतु अपना मन जरूर रोमांटिक हो उठता है ऐसी  ब्यूटीपार्लरों  से खरीदी गई ऐसी बनावटी सुंदरता महँगी तो होती ही है और जो इतने पैसे खर्च करके सुंदरता खरीदेगा वो अपने पैसे बेकार तो करेगा नहीं उसे कोई छेड़े या न छेड़े ऐसे लोग खुद ही किसी को छेड़ बैठते हैं ऐसे लोगों को आश्चर्य हो रहा होता है कि इतने पैसे भी खर्च किए किन्तु किसी ने पसंद भी नहीं किया !सच्चाई भी है कि भले लोग ऐसे कपड़े कटे लोगों की ओर देखना भी नहीं पसंद करते !एक ब्यूटी पार्लर वाले ने एक दिन बड़ी  मजेदार बात बताई !वो कहता है "एक महिला हमारी क्लाइंट हैं वो पहले पड़ोसवाले पार्लर से सजती थीं किंतु अब हमारी रैगुलर कस्टमर हैं उनसे एक दिन मैंने पूछा  कि पहले जिसके यहाँ से आप सजती थीं वो क्या अच्छा मेकअप नहीं करता था तो वो कहने लगीं मेकअप तो अच्छा वो भी करता था तभी तो मैं पिछले दो साल से उसी से करा रही थी !फिर छोड़ा क्यों तो उन्होंने कहा कि तुमसे मेकअप कराने के बाद कई लोग छेड़ छाड़ करते हैं जबकि उसके यहाँ से दो साल से करते रहे कभी किसी ने छेड़ा ही नहीं !हर बार हमारे पैसे भी बेकार चले जाते थे !" 
     सोलह शृंगारी (षोडश शृंगार) की यह प्राचीन परंपरा रही हैं। आदि काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों प्रसाधन करते आए हैं और इस कला का यहाँ इतना व्यापक प्रचार था कि प्रसाधक और प्रसाधिकाओं का एक अलग वर्ग ही बन गया था। इनमें से प्राय: सभी शृंगारों के दृश्य हमें रेलिंग या द्वारस्तंभों पर अंकित (उभारे हुए) मिलते हैं।अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, माँग भरना, महावर लगाना, बाल सँवारना, तिलक लगाना, ठोढी़ पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दाँतों में मिस्सी, आँखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना।
"कॉलेज में लिपस्टिक लगाकर न जाएं लड़कियांः राज्यपाल(कर्णाटक)"

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