बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

दशहरा महिलाओं के अपमान का बदला लेने का सबसे बड़ा पर्व !

    महिलाओं के सम्मान का सबसे बड़ा पर्व है नवरात्र !
         दशहरा और नवरात्र जैसे त्योहारों पर  श्रद्धा रखने वाले लोग बलात्कारी नहीं हो सकते !

    शास्त्रों में कन्याओं के पूजन का विधान तो है ही साथ ही देवी रूप में सौभाग्यवती स्त्रियों के पूजन का विधान भी है जो सनातन हिन्दू संस्कृति के अलावा किसी अन्य धर्म संप्रदाय में नहीं दिखता !दूसरे की स्त्री को माँ मानने के संस्कार भी सनातन हिन्दू संस्कृति में ही मिलते हैं ।
      प्यार की परंपरा भारत में सबसे अधिक प्राचीन है हमारी संस्कृति में माता पिता भाई बहन पिता पुत्री पति पत्नी आदि के आपसी संबंधों जो प्रेम था ओ वास्तव में संजीवनी था जिसके बलपर लोग गरीबत  में भी गौरव पूर्ण जीवन जी लिया करते थे । 
   इसके विपरीत राक्षसी संस्कृति में प्यार का मतलब केवल सेक्स होता था उनका मानना था कि जहाँ सेक्स नहीं वहाँ प्यार कैसा ?ऐसे सेक्सुअल प्रेमी अर्थात मूत्रता के लिए मित्रता का नाटक करने वाले स्त्री पुरुष भरतीय संस्कृति का हिस्सा कभी नहीं रहे !वो वास्तव में राक्षसी संस्कृति के उपासक थे और उनके आचार व्यवहार भी उसी प्रकार के होते थे !
       लंका में सीता को खोजने जाते समय हनुमान जी ने कहा कि मैंने सीता जी को कभी देखा नहीं है तो उन्हें पहचानूँगा कैसे ?
     इस पर जाम्बवंत जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति की मान्यता है कि महिलाएँ अपनी चोटी को पति के प्रेम का प्रतीक मानती हैं इसलिए उनका एक पति होता है इसीलिए वो एक चोटी  धारण करती हैं अतः लंका में एक चोटी में जो स्त्री मिले वो समझ लेना कि भारतीय संस्कृति को मानने वाली है अन्यथा लंका तो प्रेम प्यार की नगरी है वो कौन स्त्री पुरुष किसके साथ कब तक रहेगा किसी का कोई भरोसा नहीं होता इसीलिए वो सब अपने बाल खुले रखती और स्वच्छंता पसंद होती हैं !
    इस व्यवहार से तुम सीता जी की खोज आसानी पूर्वक कर सकते हो हनुमान जी ने कहा ये तो बहुत अच्छी और बहुत सरल पहचान है !जब लंका में हनुमान जी गए तो सारी राक्षसियाँ बाल बिखेरे दिख रही थीं कहीं किसी के कोई चोटी नहीं थी तब तक देखा कि एक स्त्री उसने तीन चोटी बाँध रखी थीं (ये त्रिजटा थी )सोचा कहीं यही तो नहीं हैं सीता जी फिर याद आया कि पतिव्रता स्त्रियाँ तीन नहीं एक ही चोटी बाँधती हैं इसलिए ये सीता माता नहीं हो सकती आगे जाकर जब माता सीता को देखा तो उनके शिर में एक ही छोटी थी -"राजत सीस जाता एक बेनी "इससे मन में निश्चय हो गया कि यही माता सीता हैं आदि आदि !
  दूसरी पहचान बताई थी कि भारतीय स्त्रियाँ एकांत में भी पर पुरुष से आँख मिलाकर बातें नहीं करतीं हैं ये अपनी संस्कृति है जबकि राक्षसियों में ऐसी परंपरा नहीं है । 
     हनुमान जी ने वहाँ जाकर देखा कि रावण माता सीता को तमाम प्रकार के भय देकर कह रहा था कि मेरी ओर देख !"एक बार बिलोकु मम ओरा ।" किंतु माता सीता ने उसकी ओर देखा नहीं जब रावण ने उन्हें देखने के लिए मजबूर कर दिया तब अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए एक तिनके की आड़ लेकर माता सीता ने डाटा था रावण को "तृण धरि ओट कहति वैदेही "इससे हनुमान जी ने समझ लिया कि यही माता सीता हैं । 
    तीसरी बात राक्षसी संस्कृति में भयंकर श्रृंगार करने की परंपरा थी जिसका शारीरिक सुंदरता से कोई तालमेल ही नहीं बैठता था । एक से एक बुड्ढी कुरूप महिलाएँ भी ऊटपटाँग श्रृंगार के बल पर जवान दिखना चाहती थीं किंतु भारतीय नारियाँ सहज श्रृंगार पसंद करती हैं । ये पहचान भी हनुमान जी के काम आ गई और इससे भी माता सीता को पहचानने में सहयोग मिला !
   मैडम सूर्पणखा जब श्री राम जी को मिलीं तब बिलकुल बूढ़ी थीं किंतु श्री राम जी युवा थे अब एक बुढ़िया मैडम ने श्रृंगार के नाम पर अपने शरीर को भयंकर लीपा पोता बिलकुल आधुनिक व्यूटीपार्लरों की तरह और श्री राम के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुँच गईं !
रुचिर रूप धरि प्रभु पहिं जाई । 
बोली बचन बहुत मुसुकाई ॥ 
    प्रेम प्यार की घटनाओं में मुस्कुराना ही तो मुख्य होता है उसी पर सारा सौदा टिका होता है । किंतु उसका श्रृंगार देखते ही श्री राम जी ने कहा कि हमारा तुम्हारा विवाह कैसे हो सकता है पहली बात तो मैं विवाहित हूँ दूसरी बात हमारी संस्कृति में स्त्रियाँ इतनी बुरी तरह नहीं सजती हैं भाई !अभी हमारे यहाँ ब्यूटीपार्लर टाइप की सुविधाएँ नहीं होती हैं हमलोग उतने फैशनेबल नहीं हुए हैं इसलिए अगर हम आपसे विवाह करना भी चाहें तो आपके शरीर की पेंट पोताई देखकर लोग समझ जाएँगे कि तुम राक्षसी हो !आदि आदि !! 
    कुलमिला कर राक्षसियों के आचार व्यवहार के आधार पर ही माता सीता को पहचान पाए थे हनुमान जी !बंधुओ !आज तो राक्षसों में और अपन लोगों के परिवारों के पहनावे में बहुत कुछ अंतर नहीं रह गया है और न ही खान पान में ही कोई ख़ास अंतर रह गया है !हम लोगों ने अपनी इच्छा से अपनी संस्कृति छोड़ी है और राक्षसी संस्कृति को फैशन समझ कर समेटने लगे हैं हम लोग !किंतु यदि हमने उस संस्कृति को फैशन समझकर ओढ़ लिया है तो उसी संस्कृति को ओढ़ने वाले फैशनेबल लोग भी अपनी संस्कृति में घुलमिल गए हैं जिन्हें भारतीय संस्कृति की भाषा में बलात्कारी कहा जाता है किंतु ऐसे बलात्कारियों से निपटने के लिए भगवान श्री राम ने जिस प्रकार से जनांदोलन खड़ा किया था आज फिर से उसी प्रकार के जनांदोलन को खड़ा करके भारतीय संस्कृति में भरोसा रखने वाली महिलाओं की सुरक्षा के लिए आम समाज को आगे आना होगा !
    मैडम सूर्पनखा को अपना आदर्श मानने वाली आधुनिक I Love You की राक्षसी संस्कृति में भरोसा रखने वाली महिलाओं की सुरक्षा कठिन ही नहीं असंभव भी होती है । जब रावण जैसा पराक्रमी भाई अपनी ऐसी स्वच्छंद बहन की नाक कटने से नहीं बचा सका तो आधुनिक पुलिस पर इतना बड़ा भरोसा कैसे कर लिया जाए ! मैडम सूर्पनखा यदि एकांत स्थलों में अकेली I Love You कहती न घूम रही होती तो क्यों कटती नाक । आज भी प्रेम प्यार के चक्करों में पड़ने वाले प्रेमी जोड़े प्रायः एकांत की तलाश में रहते हैं ये सूनी बसों में ऑटो में मेट्रो में पार्कों में पार्किंगों में बड़ी बेशर्मी से एक दूसरे को चूम चाट रहे होते हैं किंतु ये उन लड़कियों के लिए किसी भी प्रकार से सुरक्षित नहीं होता सरकार किसी की हो पुलिस कोई भी क्यों न हो ऐसी लड़कियों की सुरक्षा कर पाना अत्यंत कठिन है !
    भगवती सीता को राक्षसों के बीच से भी निकालकर लाने में श्री राम इसीलिए सफल हुए क्योंकि सीता माता का अपना जीवन भारतीय संस्कृति के अनुरूप था!इसका सीधा सा मतलब है कि भारतीय संस्कृति में भरोसा रखने वाली सीता राक्षसों के बीच भी यदि सुरक्षित रह सकीं तो आम नारी अपने देश में सुरक्षित क्यों नहीं रह सकती !बशर्ते !जीवन शैली भारतीय संस्कृति के अनुरूप हो !
    




       

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