रविवार, 20 जुलाई 2014

हमें यदि ऐसे बुड्ढे और बुढ़ियाँ ही पूजनी होंगी तो साईं और राधे माँ जैसे ही क्यों ? हम तो अपने माता पिता तथा पूर्वजों एवं पितरों को पूजेंगे !!

     हिन्दुओं के यहाँ भगवानों की कोई वैकेंसी खाली नहीं है !फिर साईं हों या अराधे माँ ,या कोई और तमाशा राम, किंतु किसी को क्या लेना देना !

    जहाँ साईं को भर्ती कर लिया जाए !भगवान बनाकर पूजने की लिस्ट में साईं का कहीं नंबर ही नहीं है !

और राधे माँ सबसे अधिक देवी देवता हिन्दुओं में ही हैं, इसलिए  साईं को कृपा करके उन धर्मों पर थोपा जाए जिनके यहाँ भगवानों की कमी है !हिन्दू अपने धर्मों एवं परंपराओं से बाहर जाकर किसी तथाकथित भगवान को गोद नहीं ले सकता !ये मजबूरी सबको समझनी चाहिए ,वैसे भी हिन्दुओं को यदि किसी को भगवान बनाकर ही पूजना होगा तो उनके स्वयं असंख्य साधू संत महापुरुष आदि दिव्यातिदिव्य हो चुके हैं जिन्होंने देश समाज धर्म एवं धर्म शास्त्रों के लिए बहुत कुछ किया है जिनके योगदान को याद करके सनातन धर्मी आज भी अविभूत हो उठते हैं ,यदि हमें भगवान बनाकर ही पूजना ही होगा तो हम उन्हें पूजेंगे, उनके मंदिर बनाएँगे उनकी मूर्तियाँ लगाएँगे । जिनके चरित्र  से दुनियाँ सुपरिचित है उनके योगदान के विषय में कोई एक प्रश्न करेगा तो सौ उत्तर देंगे आखिर उनके आचरण ही ऐसे उत्तमश्लोक होंगें कि उनकी पहचान बताने और प्रशंसा करने में हमें शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा बगलें नहीं झाँकनी पड़ेंगी ,टी.वी. वालों को पैसा देकर उनसे झूठी प्रशंसा नहीं करवानी पड़ेगी !

       साईं सनातन धर्म के प्रति समर्पित व्यक्ति नहीं थे वो सभी धर्मों को मानने वाले थे इसलिए जिसे हमारे धर्म के प्रति भरोसा नहीं था उस पर हम ही भरोसा क्यों कर लें ? सभी धर्मों के लोग उन्हें जितना मानेंगे हिन्दू  भी उतना मानेंगे वो जिसकी इच्छा होगी ।      

    साईं बूढ़े थे इस नाते उनका सम्मान उसी तरह किया जा सकता है जितना सभी वृद्धों का होता है आखिर साईं वीआईपी बूढ़े क्यों माने जाएँ !आखिर हमें क्यों लगता है कि हमारे माता पिता दादा दादी आदि पूर्वज भगवान बनने के लायक नहीं थे उनमें ऐसी क्या कमी थी जिसे साईं पूरी करते हैं अगर कोई कहता है कि साईं मनोकामना पूरी कर देते हैं याद रखिए बड़े बूढ़ों की सेवा से जो आशीर्वाद मिलता है वो अमोघ कवच होता है वो अनंत पुण्यफल प्रदान करता है उससे बड़ी बड़ी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं ये स्वाभाविक है हमारे धर्म शास्त्रों का ये उद्घोष है कि वृद्धों की सेवा से ये चार चीजें प्रतिदिन बढ़ती हैं -

      चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्

               आयु, विद्या,यश और बल   

    इसका अनुभव वही बता सकते हैं जिन्होंने अपने घर के वृद्धों का सम्मान किया है पूजन किया है जो अपने घर के वृद्धों का हक़ मार  करके दूसरे के वृद्धों(साईं ) का पूजन करते घूमते हैं उन्हें फल तो भगवान देते हैं किन्तु वो फल नहीं मिलता है जो अपने बृद्धों के पूजन से मिलता है आखिर हम दूसरे के बूढ़ों को पूजते घूमेंगे तो हमारों को कौन पूजेगा इसलिए वो फल नहीं मिलता दूसरा फिर अपने परेशान करते हैं अर्थात पितृदोष होता है !ऐसे कितने लोग हैं जो अपने पितरों का पूजन करते हैं श्राद्ध करते हैं और उन्हें छोड़कर साईं बाबा जैसे दूसरे के बूढ़े को पूजते घूमते हैं !अपने माता पिता सास श्वसुर आदि की पूजा न करके दूसरे बूढ़ों (साईं )को पूजते हैं तो उनका श्राप लगता है बेशक वोमाता पिता आदि जीवित ही क्यों न हों बेशक वो श्राप न दें किन्तु भगवान ही ऐसा न्याय करते हैं यदि ऐसा नहीं होगा तो दुनियाँ साईं को पूजने लगेगी और अपने माता पिता को वृद्धाश्रम भेज आएगी या उनकी उपेक्षा करने लगेगी !

         यह तो सब लोग मानते हैं कि साईं और कुछ भी हों किन्तु हिन्दुओं के भगवान नहीं हो सकते !यदि यह सच है तो यह भी मानना पड़ेगा कि साईं की मूर्तियाँ मंदिरों में नहीं रखी जा सकतीं क्योंकि मंदिर भगवान के लिए बनाए जाते हैं ! जितना यह सच है उतना ही सच यह भी है कि साईं की मूर्तियाँ प्राण प्रतिष्ठित नहीं हो सकतीं क्योंकि वेदों में मन्त्र तो देव प्रतिष्ठा के लिए होते हैं और बिना प्राण प्रतिष्ठा की हुई मूर्तियों का पूजन करने से हिन्दुओं के देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा के विषय में भी संशय होगा कि शायद ये भी देव मूर्तियाँ न होकर पत्थरों के खंड ही पुरुषाकृति के बनाकर फूल मालाएँ चढ़ाकर कर गाया बजाया  जाने  लगा हो जबकि देवी देवताओं की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है जो साईं की मूर्ति में संभव ही नहीं है । हो सकता है साईं साधू संत या कोई दूसरे धर्म के फकीर रहे हों किन्तु मंदिरों में साईं की मूर्ति रखकर देव पूजा पद्धति से साईं की पूजा तो नहीं  ही की जा सकती  है क्योंकि यह शास्त्र सम्मत नहीं है । 

    साईं को साधू संत यदि मान भी लिया जाए तो शास्त्र को एक तरफ रखकर आँखें मूँद कर साधुवेष पर भी अंध विश्वास तो नहीं ही किया जा सकता है वैसे भी अंध आस्था के कारण ही माता सीता का हरण हुआ था सनातन हिन्दुओं को उस घटना से बहुत कुछ सीखना होगा !

     इसलिए कुछ धार्मिक लोग भी  यदि साईंपूजा का समर्थन कर देंगे तो भी ऐसे स्वयंभू नीति नियामकों को सनातन धर्मी हिन्दू समाज अपना धार्मिक प्रतिनिधि क्यों मान लेगा यदि वो शास्त्र सम्मत न बोलकर अपितु धर्मशास्त्रों की आवाज दबाकर अपना मनगढंत फतवा जारी करेंगे!सनातन धर्मी हिन्दू किसी का  बँधुआ मजदूर तो नहीं है जो धर्म के नाम पर उसे जैसा समझा दिया जाएगा वैसा मान लेगा !यदि वो शास्त्र पढ़ सकता है तो स्वयं भी पढ़ेगा और समझेगा तब मानेगा !

      केवल धार्मिक वेष भूषा धारण कर लेने से किसी को संत नहीं माना जा सकता! संत स्वयंभू नहीं हो सकते !साधू संत वेद पुराणों एवं धर्म शास्त्रों को मानते हैं भगवान को भगवान मानते हैं इसलिए हिन्दू समाज उन्हें भगवान की तरह मानता है !किन्तु इसका ये कतई मतलब नहीं है कि धर्मवेष धारण करने वाले ऐसे कुछ लोग किसी अनाम बुड्ढे को भगवान बनाकर पूजने के लिए सनातन हिन्दुओं पर थोप देंगें ! अब सनातन धर्मी हिन्दू समाज किसी के भी ऐसे आदेश को स्वीकार नहीं करेगा जिससे उसके धर्म शास्त्रों की उपेक्षा होती हो देवताओं का गौरव घटता हो जिससे उसके आस्था प्रतीकों मंदिरों की गरिमा के साथ खिलवाड़ किया जाता हो !

   बड़े बड़े  मलमलबाबाओं, तमाशारामों, आमोदप्रमोदों तथा कुचक्रपाणियों के मनमाने ऊलजुलूल एवं धर्म के नाम पर धर्म विहीन अधार्मिक अशास्त्रीय निर्णयों वक्तव्यों आचरणों से सनातन धर्मी समाज अब तंग आ चुका है । जब होता है तब सनातन धर्म कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है आखिर क्यों और कोई धर्म क्यों नहीं ? सनातन धर्म शास्त्रों में लिखी बातों का उपहास उड़ाया जाता है सनातन धर्म के बड़े से बड़े साधू संतों को टी.वी.चैनलों पर बैठकर लोग गाली दे देते हैं ,ऐसे लोग जिनकी धार्मिक शिक्षा बिलकुल शून्य है वो भी टी.वी.चैनलों पर बैठकर धार्मिक विन्दुओं पर हमारे साधू संतों से माफी माँगने की माँग करते हैं उनका इतना दुस्साहस ! 

      भगवा वस्त्रों में शरीर लिपेट कर रहने वाला कोई सनातन धर्म शास्त्र द्रोही हिन्दुओं के प्राण रूप भगवान श्री राम और श्री कृष्ण को आम इंसान बता देता है भगवान की मूर्तिओं को आम पत्थर बता देता है ऐसे निकृष्ट व्यक्ति का भी सम्मान करने की एवं उसे स्वामी जी कहने की हिन्दू समाज की आखिर क्या मजबूरी है!

     राजनीति करने के लिए कुछ लोग धर्म से जुड़े हैं धार्मिक वेष भूषा बनाए फिरते हैं अधिकांश ऐसे साधुओं ने ही साईं पूजा का समर्थन किया है उनकी बातों का विश्वास आखिर कैसे किया जाए क्योंकि वो पूर्णतया धार्मिक नहीं होते हैं आधे धार्मिक और आधे नेता होते हैं तो धार्मिक वेष भूषा में रहते हुए भी राजनैतिक दोष दुर्गुण उनमें आ जाना स्वाभविक ही है ,आखिर  चुनाव लड़ने के लिए उन्हें बहुत पैसा चाहिए दुनियां जानती है कि उनका कोई कारोबार नहीं है उन्हें यदि चुनावी चंदा चाहिए तो  माँगना ही पड़ेगा !उस धन के लिए वो साईं की वकालत करें या किसी और प्रकार की दलाली या कमीशन का कुछ और काम धंधा देखें ,कुछ न कुछ ऐसा ही करना पड़ेगा उन्हें अन्यथा आखिर कहाँ से आएगा वो भारी भरकम धन जो चुनाव लड़ने के लिए चाहिए इसलिए धन के लिए कोई भी अशास्त्रीय समझौता करना उनकी मजबूरी हो सकती है किन्तु आम आदमी जो बिलकुल आम बनकर जी लेना चाहता है आखिर वो अपने देवी देवताओं ,धर्म शास्त्रों ,मंदिरों एवं महापुरुषों की प्रतिष्ठा से समझौता क्यों करे ! 

    साईं संप्रदाय की सोच ही न केवल झूठ पर टिकी हुई है अपितु काल्पनिक है मनगढंत है तर्क संगत भी नहीं है !और अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाली है ! वैसे भी सनातन धर्म का अंग बने रहकर धर्म शास्त्रीय सीमाओं से बाहर जाकर किसी को भगवान स्वीकार ही नहीं किया जा सकता !

       जिसके कार्यों का तत्कालीन इतिहास में कहीं कोई जिक्र न मिलता हो, जिसका उस समय की आजादी की लड़ाई में कोई योगदान न मिलता हो, जिसके जन्म का पता न हो कर्म का पता न हो जिसके कुल खानदान का पता न हो, जिसके माता पिता का नाम पता न हो जिसके नाम का पता न हो जिसका नाम भी लोगों ने देखा देखी रख लिया हो, जिसके विषय में कुछ भी पता न हो जिसके धर्म और उपासना पद्धति के विषय में किसी को कोई ज्ञान ही न हो उसके विषय में इधर उधर से सुन सुनाकर कोरी कल्पनाएँ करके सतही बातों का आश्रय लेकर कुछ लिख पढ़ दिया गया हो किन्तु ऐसे किसी भी बेनाम खानाबदोस आदमी को कोई अपने घर का नौकर तो रखता नहीं है फिर सनातन धर्मी लोग ऐसे लोगों को भगवान कैसे और क्यों मान लें ! क्या अपने यहाँ भगवानों की कोई कमी है क्या ?क्या श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा गणेश हनुमान जी जैसे देवी देवताओं के मंदिर हमने यूँ ही दिखावा में बना रखे हैं इनके प्रति हमारी कोई आस्था ही नहीं है हमारे पूर्वज इनकी पूजा बेकार में ही करते रहे क्या या उन्हें समझ नहीं थी अन्यथा वो भी कोई रोड छाप आदमी पकड़ कर  ले आते और उसे बना लेते अपना भगवान किन्तु वो समझदार थे उन्हें अपने भगवानों की पहचान थी । कहने को तो वो गाय और कुतिया में एक दृष्टि से समानता मानते थे कि दोनों में भगवान है इतने तक किन्तु उनके पास इतना विवेक था कि वो दूध हमेंशा गाय का ही पीते थे कुतिया का नहीं !

      आज साईं प्रकरण में समझदारी की कमी के कारण  समस्या ये है कि लोग हमें समझा रहे हैं कि जब गाय और कुतिया  दोनों में ही भगवान हैं तो हम गाय का ही दूध क्यों पिएँ आखिर कुतिया का क्यों न पिएँ ?ये हमारा स्वतन्त्र अधिकार है हम किसी का भी दूध पी सकते हैं हमारी अपनी आस्था हमें रोकने वाला कोई कौन होता है बात ये भी सही है किन्तु शंकराचार्य जी कहते हैं कि हम तो चाहते हैं कि हर किसी को इतना विवेक हो कि कोई कुतिया का दूध न पिए क्योंकि उसमें विकार होते हैं फिर भी जो लोग तमाम ऊट पटांग तर्क देकर कुतिया के दूध के गुण समझाने पर आमादा हैं तो शंकराचार्य जी का अभिप्राय यह है कि ऐसा करने को हम यद्यपि सबको रोकते हैं फिर भी जो लोग कुतिया का दूध पीना ही चाहें तो हम उन्हें रोकते नहीं हैं किन्तु वो हमसे अलग बैठकर पिएँ क्योंकि हमारा शास्त्र उसे अशुद्ध मानता है दूसरी बात उसे कुतिया का दूध ही कहें गाय का दूध न कहें क्योंकि इससे भ्रम  पैदा होता है तो इसमें गलत क्या है !आखिर यह समझने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है कि कुतिया के दूध को भी गाय का दूध कहने से हमारे गाय के दूध को भी लोग कुतिया की श्रेणी में समझने लगेंगे !

    कुल मिलाकर कोई कुतिया को कुतिया कहते हुए स्वाभिमान पूर्वक कुतिया का दूध क्यों नहीं पीता है यदि ऐसा करे तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है किन्तु दूध  कुतिया का ही पियूँगा और उस कुतिया को ही गाय कहूँगा ये जबरदस्ती आखिर कैसे चलेगी !समाज में रहने के लिए कुछ तो मानना पड़ेगा!

         वैसे भी जब कुतिया और कुतिया के दूध पर इतनी ही आस्था है तो उसके कुतिया नाम से इतनी चिढ़ क्यों है आखिर उस कुतिया का नाम गाय रखना क्यों जरूरी है कुतिया को कुतिया के रूप में में ही रहने में क्या बुराई है ! उसे गाय रूप में प्रतिष्ठित करने का मतलब ही है कि लगाव उनका भी गाय के प्रति ही है कुतिया के प्रति नहीं ,उन्हें भी पता है कि सम्मान गाय के नाम से ही मिल पाएगा कुतिया के नाम से नहीं इसका सीधा सा मतलब है कि कुतिया के गुणों और दूध में ताकत बिलकुल नहीं है अन्यथा वो अपने नाम से भी पुज सकती थी । सम्मान गाय का ही है इसीलिए तो गाय कहने के पीछे पड़े हुए हैं ! 

       किसी का नाम भगवान रखने का मतलब है भगवान ने जो भी उत्तम कार्य किए हैं उनके श्रेय में घुस पैठ कर लेना इन श्रेयतस्करों को ये समझ में नहीं आता है कि कवीर ,सूर, तुलसी, मीरा, रसखान,चैतन्य महाप्रभु ,रविदास जैसे असंख्य महापुरुषों ने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बलपर इस संसार में अपने को स्थापित किया है भगवान बनके नहीं !भगवान ही बनाना होगा तो उन्हें बनाया जाएगा जिन्होंने देश और समाज की मुशीबत में कन्धा लगाया है अन्यथा केवल धंधा करने के लिए किसी खानाबदोश आदमी को क्यों बना लेंगे अपना भगवान?कहावत है -

                  "जान न पहचान बड़े मियाँ सलाम "

      ये तो अजीब बात है एक घर में सगे दो भाई हैं एक भाई बाजार गया और  वहां से एक बुड्ढे का हाथ पकड़ कर चला आवे और घर वालों से कहे कि ये हमारे पिता जी हैं घर वाले उस पर गुस्सा हों तो वो कहे कि ये तो हमारी आस्था है हम रखेंगे भी इसी घर और मानेंगे भी इसी को अपना बाप !गाँव वाले लोगों को सुन सुन कर मजा आवे दूसरों के विवाद में पञ्च कौन नहीं बनना चाहता है विवाद बढ़ा तो राजदरवार में बात पहुंची सबको बुलाया गया तो सबने अपनी अपनी बात रखी सब की बात सुनकर राज सभा ने सर्व सम्मति से निर्णय लिया कि वो उसे अपना पिता मानकर घर में रखता है तो रखने दो तुम्हें इसमें क्या आपत्ति !इस पर उसकी माँ ने कहा कि राजा साहब आप केवल इसके अधिकारों के विषय में सोच रहे हैं हमारे कोई अधिकार ही नहीं हैं क्या ?आप ये क्यों नहीं सोचते कि जब हमारा बेटा इसे अपना बाप बना कर घर में रखेगा तो हम मानें या न मानें किन्तु लोग इसे समझेंगे तो हमारा आदमी ही इसलिए हम इसका विरोध कर रहे हैं उसके भाई से पूछा गया तो उसने कहा कि राजा साहब हमारा तो घर से निकलना मुश्किल हो गया है हर कोई चिढ़ाता है कि और आपके नए पिता जी के क्या हाल चाल हैं ! हम उनसे कितना भी कहते हैं कि वो हमारे पिता नहीं हैं तो लोग कहते हैं कि ऐसा कहीं होता है कि दो सगे भाइयों के पिता अलग अलग हों इसलिए इसका अपमान हमें भी झेलना पड़ता है!ये सब बातें सुनकर राजा को उसकी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने  फैसला सुनाया कि तू इसका नाम और कुछ भी रख ले जिससे तुम्हारे घरवालों की प्रतिष्ठा न जुड़ी हो किन्तु किसी को पिता नहीं बना सकते क्योंकि इससे तेरे घरवाले भी प्रभावित हो रहे हैं !

   यही स्थिति कुछ लोगों के द्वारा साईं को भगवान मानने में है इससे  सारे हिन्दू प्रभावित हो रहे हैं ! साईं को साईं कहकर साईं की तरह मानने में किसी को कहाँ दिक्कत है सारी आपत्ति तो साईं को भगवान कहने में है !इसे भी मूर्खता ही कहा जाएगा कि जिन लोगों ने अपना आस्था पुरुष(साईं)अलग गढ़ लिया उसकी अलग मूर्तियाँ पूजने लगे,अलग मंदिर बनाने लगे,उसकी अलग पूजा पद्धति बनाने लगे, इन धर्म नकलचियों को जब सब कुछ नक़ल सनातन धर्म की ही करनी है तो अलग भगवान बनाने की जरूरत क्या थी?

      सनातन धर्म में रहते हुए साईं को भगवान मानना धर्मापराध है चूँकि सनातन धर्म की सशास्त्रीय अवधारणा इसकी अनुमति नहीं देती है जगद्गुरु शंकराचार्य जी की जिम्मेदारी है कि वो इसके विरुद्ध समाज को जागृत करें वो अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं।शास्त्रीय साधू संतों  विद्वानों का समर्थन उन्हें प्राप्त है फिर कोई भी हिन्दू उनके शास्त्रीय आदेश पर अंगुली कैसे उठा सकता है वो भी तब जबकि धर्म शास्त्र सम्मत हो ! 

     जो लोग यह कहते हैं कि तुम भगवान मानो न  मानो किन्तु हमें तो मानने दो !मैं पूछता हूँ  कि इतनी उदारता केवल सनातन धर्म के क्षेत्र में ही क्यों है ?सामजिक क्षेत्र में क्यों नहीं ?चोर,लुटेरे,हत्यारे बलात्कारी आदि ऐसे तो सब कहने लगेंगे कि तुझे गलत काम नहीं करना है मत कर मुझे तो करने दे ! क्या देना संभव है उन्हें छूट ?

     इसलिए सनातन धर्म और शास्त्र विरुद्ध कार्य औरों को भी कैसे कर लेने दे चूँकि इसी धर्म के अंग हम भी हैं इनके किसी गलत काम का दंड हमें भी भोगना होगा चूँकि धर्म व्यक्तिगत नहीं होता है ! वैसे भी कोई धर्म अपने धार्मिक और शास्त्रीय सिद्धांतों के विरुद्ध किसी की कोई हरकत बर्दाश्त करता है क्या ?आखिर सनातन धर्म को छोड़ कर ये सीख किसी और को क्यों नहीं दी जाती है अभी कुछ दिन पहले ही तो धर्म विशेष के आस्था महापुरुष की पोशाक की नकल किसी ने कर ली थी तो जो बवाल हुआ था सारी दुनियाँ ने देखा था किन्तु वहाँ तो पोशाक की नक़ल थी यहाँ तो हमारे भगवानों की नक़ल की जा रही है और हम्हीं को ऐसा स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जा रहा है ये हमारी कायरता का ही परिणाम है अगर मीडिया में हिम्मत थी तो पोशाक प्रकरण में लगा कर दिखा देते धर्म संसद !सबकी सारी  बकवास केवल सनातन धर्मियों के लिए !  

      ये कोई बाप दादा की जमीन का हिस्सा नहीं है जो बाँट कर अपना अपना हिस्सा ले लिया जाएगा ! ये तो धर्म है बंधुओं ! ये अपने पूर्वजों ने हम सबको साथ साथ मिलकर मानने और मनाने के लिए बनाया है इसमें तो उसी तरह से चलना पड़ेगा जैसी परम्पराएँ पहले से प्रचलित हैं और यदि कुछ नया करना होगा तो शास्त्रीय मर्यादाओं में रहकर ही आपसी सहमति से करना पड़ेगा धर्म में मनमानी नहीं चल सकती ,अपनी सुविधानुशार चलने की छूट किसी भी धर्म में नहीं है फिर सनातन धर्म से ही ऐसी अपेक्षा क्यों ? यदि कर्तव्य पालन में छूट की बात स्वीकार की गई तो सारे अपराधी उन्मत्त हो जाएँगे वो भी कहेंगे कि तुझे चोरी,बलात्कार हत्या आदि नहीं करनी है मत कर मुझे तो करने दे ! ऐसे न तो धर्म चल पाएगा न समाज और न ही देश । हर किसी जगह नियम कुछ तो बनाने और मानने ही पड़ते हैं अन्यथा संविधान बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ती ? तन पर शासन सरकार का होता है मन पर शासन धर्म का होता है यदि तन के संविधान की आवश्यकता है तो मन के संविधान की क्यों नहीं ! अपराध करने वाले को संविधान सजा देता है वहीँ धर्म अपराधी को अपराध से मुक्ति हेतु प्रेरित करता है वैसे भी एकांत के अपराधों में धर्म सबसे अधिक कारगर सिद्ध हो सकता है इसलिए धर्म में मन मानी क्यों कि ' तू मत कर मुझे तो करने दे' इस मुझे के चक्कर में ही तो देश और समाज की दुर्दशा हो रही है परिवार टूट रहे हैं समाज विखर रहा है इसलिए मुझे क्यों हमें क्यों नहीं ?

      

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