रविवार, 21 अप्रैल 2024

22-4-2024


   वैज्ञानिक क्षमता से अधिक भार और उससे भी अधिक अपेक्षाएँ !

   

 वर्षा और आँधी तूफ़ान के पूर्वानुमान के लिए कहाँ है विज्ञान !

     मानसून कब आएगा कब जाएगा !इस वर्ष वर्षाऋतु में  कितनी वर्षा होगी,वर्षा होने की संभावना कब कब बनेगी !कम वर्षा होने या बाढ़ आने की संभावना कब बनेगी |ऐसे प्रश्नों के आवश्यक उत्तर खोजने लायक विज्ञान की कहाँ है ? ऐसी घटनाओं का निर्माण प्रकृति के जिस भी स्तर पर होता होगा | उस अप्रत्यक्ष प्रक्रिया को उपग्रहों रडारों आदि के द्वारा देखा जाना ही संभव नहीं है | इसलिए ऐसे दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान उपग्रहों रडारों आदि के द्वारा कैसे लगाए जा सकते हैं | 

     अलनीनो लानिना जैसी समुद्री घटनाओं के आधार पर यदि मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी की जाए तो ऐसी घटनाओं का वर्षा या आँधी तूफानों आदि के निर्मित होने में योगदान क्या है | इनका उन घटनाओं से संबंध क्या है | ये मात्र एक कल्पना है जिसके आधार पर अभी तक लगाए गए पूर्वानुमान कई बार सही नहीं निकले हैं |ऐसी स्थिति में इनके आधार पर विश्वासनीयता पूर्वक पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | 

    कोरोना महामारी के समय कुछ वैज्ञानिकों का मत था कि महामारी से पीड़ितों की संख्या बढ़ने घटने का कारण मौसम संबंधी घटनाओं का प्रभाव भी हो सकता है | ऐसी स्थिति में महामारी पर  मौसम संबंधी प्रभाव का आकलन करने के लिए मौसमसंबंधी पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता थी| उस समय विमानों का परिचालन बंद कर दिए जाने से उनसे मिलने वाला डेटा बंद हो गया था |जो मौसम संबंधी अनुसंधानों में बड़ी बाधा थी ,जबकि ऐसे समय मौसम संबंधी  पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता थी ! 

     मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने में उपग्रहों से तो अधिक से अधिक इतनी ही मदद मिल सकती है कि किसी एक स्थान पर हो रही वर्षा या उठे हुए बादलों को या आँधी तूफ़ानों को उपग्रहों रडारों की मदद से दूर से ही देख लिया जाए वे जिस दिशा में जितनी गति से जाते दिखें उसी के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाए कि ये कितने समय में किस देश प्रदेश आदि में पहुँच सकते हैं | उसी हिसाब से अंदाजा लगाकर भविष्यवाणी की जा सकती है कि इतने दिनों या घंटों में ये बादल या आँधी तूफ़ान आदि किस देश प्रदेश आदि में पहुँच सकते हैं |

     कई बार हवाएँ अचानक अपनी दिशा बदल लेती हैं तो बादल या आँधी तूफ़ान आदि भी अपनी दिशा बदल लेते हैं | जिससे ऐसी भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं | कई बार ऐसी घटनाएँ बीच में ही शांत हो जाती हैं तो भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं |

   ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी घटनाओं का निर्माण जिन परोक्ष परिस्थितियों में होता है | उन्हें देखने समझने एवं उसके आधार पर आगे से आगे सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की क्षमता अर्जित किए बिना ऐसा कोई विश्वसनीय विज्ञान नहीं है जिसके आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो |     इसके लिए ऐसा कोई सक्षम विज्ञान कहाँ है |जिससे ऐसे उत्तर पाने की अपेक्षा रखी जा सके,ऐसी घटनाओं के पैदा होने के कारण प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं पड़ते | कारण अप्रत्यक्ष होने के कारण उनके लिए परोक्ष विज्ञान की आवश्यकता होती है |जिसके बिना मौसम के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है | ऐसा किए बिना महामारी पर पड़ने वाले मौसम के प्रभाव का आकलन कैसे किया जा सकता है |

 वायु प्रदूषण 

      महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए वायुप्रदूषण को भी जिम्मेदार बताया जाता रहा है |इसका निश्चय तो तभी हो सकता है जब ये पता लगे कि महामारी पैदा कैसे हुई थी ! इसके लिए जिम्मेदार कारण क्या हैं ?उन कारणों का वायुप्रदूषण से संबंध कैसे जुड़ता है |वायु प्रदूषण महामारी को पैदा करने में सहायक कैसे होता है | महामारी के बनने की प्रक्रिया न तो प्रत्यक्ष दिखाई देती है और न ही  वायुप्रदूषण से महामारी का कोई प्रत्यक्ष संबंध जुड़ते दिखाई देता है | 

    दूसरी कठिनाई ये है कि महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए यदि वायुप्रदूषण को जिम्मेदार मान भी लिया जाए तो वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार तत्वों को खोजकर न केवल सामने लाना होगा प्रत्युत ये भी निश्चित  करना होगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण यही हैं | 

      वर्तमान समय में वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जो घटक जिम्मेदार बताए जाते रहे हैं उनमें उद्योगों वाहनों से निकलने वाले धुएँ का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है | इसके लिए यह निश्चित करना होगा कि उद्योगों और वाहनों प्रचलन जब नहीं था उस समय वायु प्रदूषण बढ़ता था या नहीं बढ़ता था | 

     ऐसे ही पराली जलाने से उठाने वाले धुएँ से वायु प्रदूषण बढ़ने के बात कही जाती है तो ऐसा पंजाब आदि कुछ प्रदेशों में ही होता है किंतु वायु प्रदूषण तो देश के अधिकाँश भाग में बढ़ता है |दूसरी बात पराली जलाने की बात तो बहुत थोड़े समय की होती है किंतु वायुप्रदूषण तो वर्ष के अधिकाँश समय में बढ़ता है | उसका कारण क्या है ? 

    दिवाली के समय पटाखे या साँप की टिकिया जलाने को प्रदूषण बढ़ने का कारण माना जाता है किंतु ये तो एक दो दिन की बात  होती है किंतु चीन जैसे जिन देशों में दीपावली नहीं  मनाई जाती है | वायु प्रदूषण तो उन देशों में भी बढ़ता है !उसका कारण क्या है ?

     विशेष बात यह है कि उद्योगों वाहनों से निकलता धुआँ हो या पराली जलाने से निकलने वाला धुआँ अथवा दीपावली में पटाखे या साँप की टिकिया जलाने से निकलने वाला धुआँ ही क्यों न हो !यदि इसे वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताया जाता है तो उन देशों के लिए क्या कहा जाए जिनमें मिसाइल आदि एक से एक घातक हथियारों से युद्ध किया जाता है और वर्षों तक युद्ध चला करता है | वहाँ तो वायु प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाना चाहिए था और वर्षों तक बढ़ा रहना चाहिए था किंतु व्यवहार में ऐसा देखने को नहीं मिला था | 

     वायुप्रदूषण को यदि महामारी बढ़ने के लिए जिम्मेदार मान भी लिया जाता है तो  युद्धरत देशों में युद्ध के बाद महामारी पैदा होनी और बढ़नी चाहिए ,किंतु युद्धरत देशों में ऐसा कुछ होते तो नहीं देखा जाता है | 

    ईंट भट्ठों से निकलने वाले धुएँ से यदि वायु प्रदूषण बढ़ता तो ईंट भट्ठों के आसा पास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण अधिक बढ़ना चाहिए एवं महामारी संबंधी संक्रमण वहाँ बहुत अधिक होना चाहिए ,किंतु ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया | 

  धूल उड़ने से यदि वायु प्रदूषण बढ़ता तो ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के द्वारा किए जाने वाले अधिकाँश कार्य धूल उड़ाने वाले होते हैं | इसलिए वहाँ वायु प्रदूषण अधिक बढ़ना चाहिए था एवं हमेंशा से धूल में काम करने वाले किसानों मजदूरों को महामारी संबंधी संक्रमण से अधिक परेशानी हुई होती किंतु व्यवहार में ऐसा होते नहीं देखा गया !

   सर्दी की ऋतु में वायु तेज न चलने को यदि वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण माना जाता है तो सर्दी की ऋतु में महामारी संबंधी संक्रमण अधिक बढ़ना चाहिए था किंतु तीसरी लहर को छोड़कर पहली दूसरी चौथी आदि लहरें सर्दी की ऋतु में नहीं आई हैं |ये सब गरमी में ही आई हैं | 

     वायु प्रदूषण बढ़ने से यदि कोरोना संक्रमण को बढ़ना होता तो सन 2020 के अक्टूबर नवंबर में कोरोना बढ़ा होता क्योंकि भारत में उस समय वायु प्रदूषण काफी अधिक बढ़ा था | दूसरी बात भारत में दूसरी लहर नहीं आनी चाहिए थी | क्योंकि उस समय वायु प्रदूषण बहुत कम था इसीलिए तो पंजाब के अमृतशर से एवं बिहार के सीतामढ़ी जिले से हिमालय के दर्शन हो रहे थे आकाश इतना साफ था | इसके बाद भी मार्च अप्रैल 2021 में महामारी की अत्यंत भयंकर लहर आई थी | 

      कुल मिलाकर ऐसा कौन सा विज्ञान है जिसके द्वारा यह पता लगाया जा सके कि महामारी संबंधी संक्रमण के बढ़ने में वायु प्रदूषण की कोई भूमिका है या नहीं ! दूसरी बात ऐसा कौन सा विज्ञान है जिसके द्वारा यह पता लगाया जा सके कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार निश्चित कारण क्या है ?उस कारण को खोजे बिना वायु प्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है और इस पूर्वानुमान के बिना महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना तब संभव नहीं होगा |यदि संक्रमण बढ़ने का कारण वायु प्रदूषण होगा,किंतु ऐसा है या नहीं यह जानने के लिए विज्ञान कहाँ है | 

  महामारी पैदा होने का कारण जलवायुपरिवर्तन  है तो जलवायुपरिवर्तन  क्या है ?

      कोरोना महामारी के पैदा होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा था | ऐसे ही  कोई महामारी या प्राकृतिक रोग फैलने लगे तो इसके लिए जलवायु परिवर्तन को दोषी माना जाता है | डेंगू मलेरिया जैसे रोग बढ़ने लगें तो उसका भी कारण जलवायु परिवर्तन ! 

       जिस विज्ञान के द्वारा के दस बीस दिन पहले की मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में या मानसून आने जाने संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है | आज तक जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुईं उनमें से किसी के विषय में भी पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | महामारी आने के विषय में एवं उसकी लहरें आने और जाने के विषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | इसका कारण भविष्य में झाँकने के लिए किसी विज्ञान का न होना बताया जा रहा है | उसी विज्ञान के द्वारा आज के सौ दो सौ वर्ष बाद के विषय में की जा रही भविष्यवाणियों का वैज्ञानिक आधार क्या है ? |यह कैसे पता लगाया गया कि जलवायुपरिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद ग्लेशियर पिघल जाएँगे,समुद्र का जलस्तर कुछ ऊपर उठ जाएगा, भीषण सूखा पड़ेगा, वर्षा नहीं होगी या बहुत अधिक होगी या कहीं कम और कहीं बहुत अधिक वर्षा होगी | बार बार भूकंप आएँगे | बार बार आँधी तूफ़ान आएँगे !अत्यंत तेजी से संक्रामक रोग फैलेंगे | बार बार बादल फटेंगे ,बज्रपात होंगे,वायु प्रदूषण बढ़ जाएगा  आदि आदि !

     ऐसा विज्ञान कहाँ है जिसके द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के विषय में पता लग पाता है |आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ यदि बार बार घटित होने लगें या तेज आँधी तूफ़ान आने लगें, अधिक वर्षा होने लगे  ,लगातार वर्षा हो रही हो ,बाढ़ आ जाए, लंबे समय तक वर्षा न हो,वर्षा ऋतु में कम वर्षा हो,सूखा पड़ जाए ,  कहीं कम और कहीं अधिक वर्षा हो,कुछ वर्षों में कम वर्षा और कुछ वर्षों में अधिक वर्षा हो जाए |कुछ स्थानों पर कम और कुछ स्थानों पर अधिक वर्षा हो ,सर्दी या गर्मी की ऋतु में अधिक वर्षा हो जाए,मानसून आने और जाने के लिए निर्धारित की गई तारीखों के आगे या पीछे मानसून आवे या जाए ,बादल फटने की घटना घटे,ओले गिरें तो ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जाता है | 

    ऐसे ही गर्मी की ऋतु में तापमान कम रहे या अधिक हो जाए ,लू कम चले या अधिक चले,सर्दी की ऋतु में सर्दी कम पड़े या अधिक पड़े !आग लगने की घटनाएँ अधिक घटित हों,ग्लेशियर तेजी से पिघलते दिखें,बज्रपात या चक्रवात जैसी घटनाएँ घटित होती दिखें या बार बार भूकंप आने लगें,या वायुप्रदूषण बढ़ने लगे तो ऐसी समस्त घटनाओं के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है | 

     कोरोना काल में अधिक टिड्डियों का आना, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में चूहों का अधिक उपद्रव मचाना,यूपी बिहार के किसानों का आवारा पशुओं से परेशान होना ,वृक्षों में अपनी ऋतु से पहले या बाद में फूल फल फूलने या फलने लगे या फूलों फलों का आकार घट या बढ़ जाए,उनके स्वाद में अंतर आ जाए तो इन सबका कारण जलवायु परिवर्तन बताया जाता है |

       प्रकृति और जीवन को प्रभावित करने में जिस जलवायु परिवर्तन की इतनी बड़ी भूमिका मानी जा रही हो,       उस जलवायुपरिवर्तन का स्वभाव,प्रभाव,लक्षण,क्रम आदि क्या है! इसके प्रभाव से मौसम में कितने कितने समय बाद कैसे कैसे परिवर्तन होते दिखाई देते हैं|जलवायुपरिवर्तन और मौसमसंबंधी घटनाओं का आपस में संबंध कैसे जोड़ा जाता है !मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के निर्माण में जलवायु परिवर्तन की भूमिका क्या है |जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मौसम पर कैसे पड़ता है | उससे मौसम संबंधी घटनाओं में किस किस प्रकार के बदलाव हो सकते हैं|जलवायुपरिवर्तन होने पर मौसम संबंधी घटनाएँ असंतुलित होती हैं या मौसम संबंधी घटनाओं के असंतुलित होने पर जलवायुपरिवर्तन होता है | ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर खोजा जाना चाहिए | 

      ऐसा किए बिना जलवायुपरिवर्तन की अवधारणा ही काल्पनिक लगती है| ऐसा लगता है कि जिन प्राकृतिक घटनाओं को घटित होते पहली बार देखा गया हो या जिनके विषय में पूर्वानुमान न लगाया जा सका हो,जिनके विषय में लगाया गया पूर्वानुमान गलत निकल गया हो !जिस प्राकृतिक घटना के विषय में जैसा अंदाजा लगाया गया हो वो वैसी न घटित हुई हो,उससे अलग या बिल्कुल बिपरीत घटित हो गई हो,जिस घटना को समझने में कोई  चूक हो गई हो,प्राणियों का स्वभाव अचानक उन्मादित होने लगा हो ,या बड़ी संख्या में लोग अचानक असहनशील होने लगें हों ,पशु पक्षी अपने स्वभाव से अलग हटकर व्यवहार करते देखे जा रहे हों !समस्त प्राकृतिक वातावरण में यदि कुछ ऐसा घटित होने लगा जो अक्सर घटित होते नहीं देखा जाता है | इन्हें समझने लायक सक्षम विज्ञान न होने के कारण ऐसा सबकुछ होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार बता दिया जाता है | 

     वस्तुतः  जिन आँधी तूफ़ानों अतिवृष्टि अनावृष्टि तथा तापमान के असंतुलन आदि के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है | उस प्रकार की घटनाएँ तो हमेंशा से घटित होती रही हैं |इनका कारण उस समय जलवायु परिवर्तन तो नहीं था अब क्यों है ?संभव है कि  यह  प्रकृति का सहज स्वभाव ही हो !इसका भी कोई क्रम होता हो कि कब किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ कितने कितने अंतराल में कितने कितने वेग से घटित होंगी !वो अपने सहज क्रम से ही घटित हो रही हों ,जिसे हम  जलवायु परिवर्तन का प्रभाव समझ रहे हों | ऐसी स्थिति में जलवायुपरिवर्तन की संपूर्ण प्रक्रिया को वैज्ञानिक आधार पर तर्कसंगत ढंग से प्रमाणित किए बिना मौसम पर उसके प्रभाव को किस आधार पर मानना उचित होगा !

            प्रत्यक्षविज्ञान और  परोक्षविज्ञान !

     (महामारी पर अंकुश लगाने की प्रत्यक्ष शक्ति और परोक्ष शक्ति -प्रत्यंगिरा आदि )

 
      प्रत्यक्षविज्ञान में जो सामने दिखाई सुनाई पड़ता है,ऐसे प्रत्यक्षसाक्ष्यों को एक दूसरे से जोड़ते हुए एक साक्ष्य श्रृंखला बनाई जाती है |उसके आधार पर किसी प्राकृतिक घटना को समझा जाता है उसके विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाया जाता है |

    परोक्षविज्ञान में किसी घटना के घटित होने के ऐसे साक्ष्यों को आधार बनाया जाता है जो वहाँ प्रत्यक्ष दिखाई नहीं दे रहे होते हैं किंतु उस घटना के घटित होने का मुख्यकारण वही होते हैं |ऐसे परोक्षकारणों का अनुसंधान करके उनके आधार पर किसी घटना के घटित होने का कारण खोजा जाता है | उस घटना के स्वभाव को समझा जाता है | उस मुख्य घटना से संबंधित उसके आगे पीछे घटित हुई कुछ छोटी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का उस मुख्य घटना के साथ मिलान किया जाता है | ऐसे परोक्षसाक्ष्यों के साथ प्रत्यक्षसाक्ष्यों को सम्मिलित करते हुए संयुक्त रूप से अनुसंधान किए जाते हैं | उसके आधार पर भविष्य के विषय में कुछ अनुमान पूर्वानुमान आदि व्यक्त किए जाते हैं | इनके सही निकलने की संभावना काफी अधिक होती है | केवल  प्रत्यक्षसाक्ष्यों के आधार पर प्राकृतिक विषयों में किए गए अनुसंधान अधूरे होते हैं |उनके सही निकलने की संभावना काफी कम होती है |

      किसी तालाब में रोपी गई सिंघाड़े की एक बेल से बहुत शाखाएँ निकलकर दूर दूर तक फैल जाती हैं |ऐसी ही बहुत सारी बेलें लगाई जाती हैं और सबकी शाखाएँ दूर दूर तक फैली होती हैं | सभी बेलों की जड़ें एक दूसरे से अलग अलग होने पर भी ऊपर एक दूसरे के साथ मिलकर दूर दूर तक फैली होती हैं | दूर से देखने में सभी बेलें बराबर लगती हैं किंतु कोई व्यक्ति यदि यह पता लगाना चाहे कि सिंघाड़े की कौन सी बेल किस दूसरी बेल से संबंधित है | यह पता लगाने के लिए उस एक बेल की जड़ तक जाना पड़ेगा और वहाँ से पता लगाना पड़ेगा कि इस एक जड़ से कितनी बेलें निकली हैं और वे किस किस तरफ गई हैं | उसी जड़ से सभी बेलों के शिखरों तक पहुँचकर यह निश्चित किया जा सकता है कि बाहर दिखने वाली सिंघाड़े की बेलों में से कौन कौन सी बेलें एक जड़ से निकलने के कारण एक दूसरे से संबंधित हैं | उस एक जड़ के सूखने या टूटने से बाहर दिखने वाली वे सभी शाखाएँ  सूख सकती हैं |  

    इस घटना में देखा जाए तो तालाब में प्रत्यक्ष दिख रही सिंघाड़े की उन बहुत सारी बेलों को कैसे भी देखकर यह पता लगाया जाना संभव नहीं है कि कौन बेल किससे संबंधित है | इसके लिए उस जड़ तक जाना पड़ा जो प्रत्यक्ष न होकर परोक्ष है |उसके आधार पर उन बेलों के आपसी संबंध का पता लगाया जा सका !इसी प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं का भी अपना समूह होता है ! कुछ भिन्न भिन्न प्रकार की घटनाएँ एक ही समूह से संबंधित होती हैं | उनमें से किसी एक घटना के विषय में पता लगाना हो तो उसकी जड़ तक जाना पड़ेगा | जहाँ वे घटनाएँ पैदा हुई होती हैं एवं एक दूसरे से जुड़ी होती हैं | वह देखने के लिए परोक्ष विज्ञान के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान नहीं है | परोक्ष विज्ञान के अभाव में जो तीर तुक्के लगाए जाते हैं वे गलत होते हैं | सिंघाड़े की बेलों के आपसी संबंधों का पता तीर तुक्कों से कैसे लगाया जा सकता है |

    ऐसे ही जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं उनसे संबंधित बहुत सारी छोटी बड़ी घटनाएँ उन मुख्य घटनाओं से आगे या पीछे घटित होती हैं | जिन्हें देखकर उस मुख्य घटना के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है|जो परोक्ष विज्ञान से ही संभव है |

      किसी नहर में बहते जा रहे किसी मोटी लकड़ी के कुछ टुकड़े कभी आपस में टकराते हैं कभी एक साथ बहने लगते हैं तो कभी एक दूसरे से दूर चले जाते हैं | उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि ये सारी कलाएँ वे लकड़ी के टुकड़े कर रहे हैं ,जबकि इसमें लकड़ी के टुकड़ों का कोई योगदान नहीं है वो जिस धारा में बहे जा रहे हैं| उस धारा के ही अनुशार उन्हें बहना पड़ता है |लकड़ी के टुकड़े कितनी गति से आगे बढ़ेंगे ये बहकर कहाँ तक जाएँगे | यदि ये पता किया जाना है तो उन लकड़ी के टुकड़ों को देखकर नहीं पता लगाया जा सकता है | इसके लिए इन टुकड़ों के बहने का वास्तविक कारण खोजना होगा | चूँकि टुकड़े पानी की धारा में बह रहे हैं | इसलिए टुकड़ों के बहने या एक दूसरे के पास तथा नजदीक आने का कारण उस नहर की जलधारा है | इसके बाद देखना होगा कि वह जलधारा किसके आधीन है!तो पता लगा कि उस नहर में जो कर्मचारी पानी छोड़ते हैं ये उन्हें पता होगा | उनसे मिला गया तो वे कहते हैं कि हमें तो समयसारिणी  दे दी गई है कि हमें कब कब कितना पानी किस नहर में पानी छोड़ना है |ऐसी स्थिति में उन लकड़ी के टुकड़ों के बहने का मुख्यकारण वह समय सारिणी होती है |जिसके अनुसार नहर में पानी छोड़ा जाता है और उसी जल में लकड़ी के टुकड़े तैरते चले जा रहे होते हैं |वह मुख्यकारण पता लग जाने के बाद यह  लकड़ी के टुकड़े कितनी गति से आगे बढ़ेंगे और बहकर कहाँ तक जाएँगे |इसका अनुमान या पूर्वानुमान उस समयसारिणी के आधार पर लगाया जा सकता है |

      ऐसे ही किसी ट्रैन को किसी दिशा में जाते हुए देखकर यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि ये ट्रैन किस स्टेशन से चली है और किस स्टेशन तक जानी है | इसे किस किस स्टेशन पर कितने बजे पहुँचना है और किस स्टेशन पर कितनी देर के लिए रुकना है| इस विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए ट्रैन के चालक से मिलकर पूछा जा सकता है | चालक वह  समय सारिणी दिखा देगा कि हमें तो इसके अनुशार चलना होता है | ऐसी स्थिति में ट्रेन के पास जाए बिना उसके चालक से मिले बिना भी केवल ट्रेन की समय सारिणी देखकर घर बैठे ट्रेन के विषय में सब कुछ पता लगाया जा सकता है | 

    जिस प्रकार से किसी भी उपग्रह रडार आदि से देखकर एवं किसी सुपर कंप्यूटर से गणना करके तालाब में तैरती सिंघाड़े की बेलों को देखकर उनकी जड़ से जुड़ी संबंधित बेलों के विषय में पता नहीं लगाया जा सकता है | ऐसे ही यंत्रों की मदद से नहर के पानी में बहते काष्ठ खंडों को देखकर उनके बहने एवं एक दूसरे के पास आने तथा दूर जाने तथा इनकी गति और गंतव्य को नहीं समझा जा सकता है और इनके विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि भी  नहीं लगाया जा सकता है |इसी प्रकार से किसी रूट पर जाती हुई ट्रेनों को देखकर ये नहीं  पता लगाया जा सकता है कि  ट्रैन किस स्टेशन से चली है और किस स्टेशन तक जानी है | इसे किस किस स्टेशन पर कितने बजे पहुँचना है और किस स्टेशन पर कितनी देर के लिए रुकना है|                                                     ऐसी परिस्थिति में आकाश में उठे बादलों या आँधी  उपग्रहों रडारों की मदद से देखकर वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवातों  बज्रपातों आदि के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है| ऐसे ही पृथ्वी में गहरा गड्ढा खोदकर उसके आधार पर भूकंप आने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है | 

   कोरोना महामारी आ जाने के बाद लोगों के संक्रमित होने लगने के बाद कुछ लोगों के मृत्यु को प्राप्त होने लगने के बाद ये सब प्रत्यक्ष होता देखकर उसके आधार पर महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है | 

    कुल मिलाकर जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना है |इसका मतलब उन घटनाओं की जड़ तक जाकर उनके उनके स्वभाव को समझना है |उनके पैदा होने का कारण खोजना एवं पैदा होने की प्रक्रिया को समझना होगा | उन परोक्ष कारणों को खोजना होगा जिनसे ऐसी घटनाएँ जन्म लेती हैं | घटनाओं को समझकर उनका प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली प्राकृतिक घटनाओं के साथ मिलान करना होगा |  इसके बाद ही उन सब के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो पाएगा |

                                              प्राकृतिक रोगों एवं रोगियों के विषय में -

     महामारी जैसे  प्राकृतिक रोगों के पैदा और समाप्त होने के कारण प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ते !ऐसे रोग अपने निर्द्धारित समय पर पैदा होते हैं और निर्धारित समय तक रहते हैं और अपने निर्द्धारित समय पर ही समाप्त होते हैं |

       किसी स्वस्थ बलिष्ठ युवा व्यक्ति के शरीर में अचानक कोई रोग होने लगे और वो दिनोंदिन बढ़ता चला जा रहा हो !ऐसे रोगी की चिकित्सा यदि प्रत्यक्ष साक्ष्यों के आधार पर ही की जानी है तो उसके शरीर की जाँच की जाएगी !उन्हीं रिपोर्टों के आधार पर चिकित्सा की जाएगी | विशेष बात यह है कि कई बार रोग और रोगी की वर्तमान स्थिति का अच्छी प्रकार से आकलन करके चिकित्सा किए जाने पर भी उससे कोई लाभ नहीं होता है और रोग बढ़ता चला जाता है |ऐसा क्यों हो रहा है ? इस प्रश्न का उत्तर प्रत्यक्ष विज्ञान के आधार पर खोजना काफी कठिन होता है | 

    इसे ही परोक्ष विज्ञान के आधार पर देखना हो तो सबसे पहले ये पता करना होगा कि इस स्वस्थ बलिष्ठ युवा व्यक्ति के बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के अचानक रोगी होने का कारण क्या है | उस कारण को खोजने के बाद यह पता लगाना होगा कि उस व्यक्ति के रोगी होने का वह परोक्ष कारण उस व्यक्ति को कब तक रोगी रखेगा !उसके रोगी रखने की अवधि जब तक रहेगी तब तक उसे किसी औषधि से थोड़ा बहुत लाभ भले मिल जाए किंतु रोग मुक्ति मिलनी संभव नहीं होगी | वैसे भी जो परोक्ष कारण उस स्वस्थ बलिष्ठ युवा व्यक्ति को अचानक रोगी कर सकता है उसके रोग को दिनोंदिन बढ़ाने में सक्षम है | वह कमजोर कारण तो होगा नहीं उसे चिकित्साबल से समाप्त कैसे किया जा सकता है |वे अपनी अवधि पूरी होने पर ही जाते हैं | 

     ऐसे रोगों की अवधि जब पूरी हो रही होती है | उस समय उस रोग से बिना किसी प्रयत्न के ही मुक्ति मिल जाती है !इस लिए परोक्ष समयबल से वह रोगी स्वस्थ होने लगता है !किंतु परोक्षविज्ञान की जानकारी के अभाव में वह व्यक्ति उस परोक्षऊर्जा को समझ नहीं पाता है,जिसके बल पर वह स्वस्थ हो रहा होता है |इसलिए उस समय वह व्यक्ति जो औषधि ले रहा होता है |उसे ही वह अपने स्वस्थ होने का कारण मान लेता है | ऐसे समय लोग अपने या अपनों के स्वस्थ होने के लिए अनेकों प्रकार की औषधियाँ उपाय पूजा पाठ दानधर्म जादू टोना आदि  कर रहे होते है !कुछ लोग किसी विशेष डॉक्टर  से दवा ले रहे होते हैं कुछ लोग कुछ बड़े अस्पतालों में एडमिट होते हैं | जो जिस प्रकार के उपाय करता हुआ स्वस्थ होता है वो अपने स्वस्थ होने का कारण उसी उपाय  औषधि चिकित्सक धर्माचरण आदि को मानने  लगता है | 

     कुछ समय बाद उसीप्रकार के रोग से पीड़ित कोई दूसरा रोगी पहले स्वस्थ हो चुके रोगियों से  पूछता है कि आप कैसे स्वस्थ हुए थे तो वो अपने वही सब उपाय  औषधि चिकित्सक धर्माचरण आदि उपायों को अपने स्वस्थ होने का कारण बताता है, तो वह दूसरा रोगी भी वही सब उपाय करने लगता है किंतु उनसे उसे स्वास्थ्य लाभ नहीं होता है | उसका कारण उसके उस रोग की अवधि उस समय तक पूरी नहीं हो पाई होती है | इसलिए उसे उस समय स्वस्थ नहीं होना होता है | इसलिए वह स्वस्थ नहीं होता है |अपने स्वस्थ होने की अवधि आने पर ही वह स्वस्थ होगा !किसके स्वस्थ होने की अवधि कब आएगी | इसका ज्ञान परोक्ष विज्ञान के द्वारा ही किया जा सकता है !इसे समझे  बिना केवल चिकित्सा आदि उपायों के बलपर प्राकृतिक रोगों से मुक्ति नहीं मिल सकती है | 

      महामारी आदि प्राकृतिक रोगों के समय संक्रमण के बढ़ने का कारण पता नहीं लग पाता है | ऐसे समय लगता है कि संक्रमितों का स्पर्श करने से संक्रमण बढ़ता है,किंतु  बहुत लोग संक्रमितों के बीच सोते जागते खाते पीते नहाते धोते रहने के बाद भी संक्रमित नहीं होते हैं | इसका कारण  परोक्ष ऊर्जा से संपन्न लोगों को उस समय अस्वस्थ नहीं होना होता है| इसलिए वे रोगी नहीं होते हैं |उन्हें बाद में होना होता है तो बाद में रोगी होते हैं | जिन्हें महामारी के उन महीनों वर्षों में रोगी होना ही नहीं होता है | वे बाद में भी रोगी नहीं होते हैं |  






        परोक्षविज्ञान का मतलब ही परंपराविज्ञान होता है | किसी भी घटना के घटित होते समय जो दिखाई पड़ता है है अक्सर वो होता नहीं है ने   प्रत्यक्ष विज्ञान की अपेक्षा परोक्षविज्ञान की भूमिका कम नहीं होती है |इतने महत्वपूर्ण विज्ञान की उपेक्षा का ही परिणाम है कि प्राकृतिक रहस्य  अभी तक अनुद्घाटित हैं |उनके विषय में जो  

     विज्ञान में प्रत्यक्ष साक्ष्यों को ही  स्वीकार किया जाता है ,जबकि परंपरा विज्ञान में प्रत्यक्ष के साथ साथ परोक्ष विज्ञान का भी उपयोग किया जाता है|प्रत्यक्ष विज्ञान की अपेक्षा परोक्ष विज्ञान की भूमिका कम नहीं होती है | प्रत्यक्ष विज्ञान के  सहयोग से अच्छे से अच्छे संसाधन जुटाकर कार्य किया जा सकता  है ,किंतु उस कार्य को होना है या नहीं होना है | यह जानकारी परोक्ष विज्ञान के बिना कैसे मिल सकती है | 

      प्रत्यक्ष विज्ञान के बलपर अच्छी से अच्छी चिकित्सा की जा सकती है किंतु उसे स्वस्थ होना है या नहीं ये पता लगाने के लिए परोक्ष विज्ञान का ही सहारा लेना पड़ेगा | महामारी आ गई है ये प्रत्यक्ष विज्ञान से पता लगाया जा  सकता  है किंतु किसे संक्रमित होना है किसे नहीं ये तो परोक्ष विज्ञान से ही पता लगाया जा सकता है |

 

 

प्राचीन काल में पूर्वानुमान लगाने के लिए जो अनुसंधान किए जाते थे उनकी दो प्रमुख विधाए हैं | एक प्रत्यक्ष साक्ष्य आधारित अनुसंधान और दूसरे समय आधारित अनुसंधान !इनमें साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में अपनी आँखों से प्रत्यक्ष या किसी यंत्र की सहायता से देखकर,या किसी संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करके जो जानकारी जुटाई गई होती है और समय आधारित अनुसंधानों में सभी परोक्ष जानकारियाँ जुटानी होती हैं | उसका प्रत्यक्ष दीखने वाले परिवर्तनों से मिलान करते जाना होता है |

    अलनीनो लानिना जैसे समुद्री परिवर्तन हों या मौसम संबंधी जलवायु परिवर्तन इनके आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि इनके स्वभाव के विषय में अभी तक कोई निश्चित जानकारी नहीं की जा सकी है | इसमें अंदाजे से कुछ भी नहीं चलेगा |मौसम संबंधी पूर्वानुमान ऐसे ही अंदाजे के आधार पर लगाए जाते हैं जिनमें से अधिकाँश सही नहीं निकल पाते हैं |     

     जिसप्रकार से कुछ खगोलीय कारणों से आकाश में अष्टमी को चंद्रमंडल आधा दिखाई दे रहा होता है,किंतु उसके बाद नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्र मंडल बढ़ेगा या घटेगा |ये वहाँ उस समय प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ रहा होता है |  इस विषय में कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है | यह घटना शुक्ल और कृष्ण पक्ष के आधार पर घटित होती है|जिसे केवल परोक्ष विज्ञान के द्वारा ही समझा जा सकता है |  जिसका निर्णय गणित के द्वारा ही किया जा सकता है |

       जिस प्रकार से परोक्षविज्ञान का सहारा लिए बिना केवल अर्द्धचंद्र मंडल को प्रत्यक्ष देखकर उसके भावी स्वरूप के बढ़ने या घटनेके विषय में निर्णय नहीं लिया जा सकता है | उसीप्रकार से आँधी तूफानों या बादलों के प्रत्यक्ष स्वरूप को उपग्रहों रडारों की मदद से आगे से आगे देखा तो जा सकता है किंतु उनके भावी स्वरूपों के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | महामारी आदि जिस भी घटना के परोक्ष सिद्धांत की जानकारी नहीं होगी |उसके विषय में कोई अंदाजा भले ही लगा लिया जाए किंतु सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |

     परोक्ष विज्ञान की जानकारी के अभाव में जो गलतियाँ स्वयं की  जाती हैं उसके लिए जलवायु परिवर्तन या महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जाता है,जबकि परंपरा विज्ञान की दृष्टि से ऐसी कल्पनाओं का  कोई वैज्ञानिक आधार इसलिए नहीं है क्योंकि इसका परोक्ष विज्ञान ही नहीं पता है | जिसके बिना ये अनुमान किस आधार पर लगाया जा सकता है कि मौसम में हो रहा परिवर्तन उसका स्वाभाविक परिवर्तन है या ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन है | ऐसे ही महामारी में आने वाला बदलाव उसका स्वाभाविक परिवर्तन है या उसका स्वरूप परिवर्तन है |छोटे आम का रंग हरा एवं स्वाद खट्टा गुठली नरम होती है किंतु बड़ा होने पर रंग पीला,स्वाद मीठा एवं  गुठली कठोर हो जाती है |ये उसका स्वाभाविक परिवर्तन है जो  उसमें होना ही होता है |इसका पता तभी लग सकता है जब इसके परिवर्तन का स्वभाव पता हो! जिसे जानना परोक्ष विज्ञान के बिना संभव नहीं है |आम में ऐसा ऐसा बदलाव होगा ये उसे केवल प्रत्यक्ष देखकर ही पता नहीं लगाया जा सकता है |  

      परोक्षविज्ञान के आधार पर चंद्रमा के स्वभाव को समझे बिना यदि केवल प्रत्यक्ष के आधार पर नवमी दशमी आदि तिथियों में चंद्रमंडल के बढ़ने की भविष्यवाणी कर दी गई हो किंतु उस समय कृष्णपक्ष होने के कारण चंद्रमंडल घटने लगा हो तो भविष्यवाणी गलत निकल गई जिसका कारण उस कृष्ण पक्ष का पता न होना है |  जिसका पूर्वानुमान परोक्ष विज्ञान के आधार पर केवल  गणित के द्वारा ही लगाया जा सकता है | यदि परोक्ष विज्ञान और गणितविज्ञान दोनों की उपेक्षा करके पूर्वानुमान लगाया गया हो तो वो सही या गलत दोनों निकल सकता है | गलत निकलने में गलती अपनी यह है कि पूर्वानुमान लगाने के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया |अपने अज्ञान को छिपाने के लिए घटना को दोषी ठहराया जाना उचित नहीं है कि अक्सर ऐसे प्रकरणों में जलवायुपरिवर्तन को अनावश्यक रूप से घसीटा जाता है | 

      ऐसी भविष्यवाणियों के गलत निकलने का कारण उस परोक्षविज्ञान का पता न होना है जिसके आधार पर ऐसी सही भविष्यवाणियाँ की जा सकती हैं| परोक्षविज्ञान  संबंधी अनुसंधानों के द्वारा यदि इसकी समयसारिणी खोजी गई होती तो ये पता लगाया जा सकता था कि शुक्लपक्ष की अष्टमी के बाद चंद्रमा बढ़ता है और कृष्णपक्ष की अष्टमी के बाद घटता है | अबकी बार किस पक्ष की अष्टमी है यह भी पता लगा लिया जाता !इसके बाद चंद्रमंडल बढ़ेगा या घटेगा वह भी पता लगा लिया जाता | इसके आधार पर जो भविष्यवाणी की जाती वो बिल्कुल सही निकलती | 

     वस्तुतः शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष  दो अलग अलग समयखंडों  के नाम है| इन्हें और इनके प्रभाव को समय आधारित अनुसंधानों से ही समझा जा सकता है | इसके अतिरिक्त ऐसा कोई दूसरा विज्ञान नहीं है जिसके आधार पर  उपग्रहों रडारों आदि से चंद्रमा या आकाशीय वर्तमान परिस्थितियों को प्रत्यक्ष रूप में देखकर यह पता लगाया जा सकता हो कि आगामी नवमी दशमी के बाद चंद्रमंडल बढ़ेगा या घटेगा |
       कुल मिलाकर समयआधारित अनुसंधानों  में ये मानकर चलना होता है कि प्रत्येक प्राकृतिक  घटना के घटित होने की  अपनी प्राकृतिक समयसारिणी होती है|जिसमें प्रत्येक घटना के घटित होने  का निश्चित समय दिया होता है ,कि किस घटना को कब घटित होना है | ऐसी सभी घटनाएँ उसी समयसारिणी के अनुशार घटित हुआ करती हैं | वो समय सारिणी यदि एकबार  खोज ली जाए तो उससे संबंधित सही जानकारी आगे से आगे मिलती चली जाएगी कि किस वर्ष के किस महीने के किस दिन आदि में कौन सी घटना घटित होनी है |

     सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में जो समय सारिणी प्राचीनकाल में खोजी गई थी | उसी समय सारिणी के आधार पर ग्रहणों के विषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाया गया पूर्वानुमान आज भी पूरी तरह सही निकलता है |वही समय सारिणी यदि भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में भी खोज ली जाए तो इनमें से किस घटना को किस वर्ष के किस महीने के किस दिन में कितने समय पर घटित होना है | इसकी सही जानकारी सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाई जा सकती है |इससे मानवता की बहुत बड़ी मदद हो सकती है |इससे संबंधित अनुसंधान प्रत्येक घटना से संबंधित समय सारिणी को खोजने के लिए ही किए जाते हैं |   

     ये दोनों विधाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग होती हैं ,किंतु पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों विधाओं का संयुक्त अनुसंधान किया जाए तो अधिक सटीक होता है |

        उदाहरण : किसी ट्रेन के विषय में पता करना हो कि वो किस दिन कितने बजे किस स्टेशन से चलकर चलेगी | कितने कितने बजे किन किन स्टेशनों पर पहुँचेगी ! 

 इसका पूर्वानुमान यदि समय आधारित अनुसंधानों के अनुशार लगाया जाए तो रेलवे द्वारा पूर्वनिर्द्धारित समयसारिणी देखकर कर ट्रेनों  को देखे बिना भी उनके  विषय में संपूर्ण जानकारी जुटा ली जाएगी |भविष्य में उनका संचालन किस दिन किस प्रकार का होगा उसके विषय में भी जानकारी मिल जाएगी जो बिल्कुल सही होगी | यही पूर्वानुमान है | 

   इसी घटनाओं को यदि साक्ष्य आधारित अनुसंधानों की दृष्टि से देखा जाए तो ट्रेन को जाते हुए देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये ट्रेन इतनी गति से इस दिशा में जा रही है इसलिए इतने समय अमुक स्टेशन पर पहुँच सकती है | बादलों या आँधी तूफानों की तरह ही उपग्रहों रडारों से यदि ट्रेनों को भी दूर से देखने की सुविधा हो तो उन ट्रेनों को कुछ पहले से देखकर कुछ बाद तक देखे रहा जा सकता है |जिससे कुछ अधिक अनुभव मिल सकते हैं और कुछ अन्य स्टेशनों पर भी ट्रेन को देखा जा सकता है उसके आधार पर कुछ आगे की स्टेशनों के विषय में भी अंदाजा लगाया जा सकता है | ये संपूर्ण प्रक्रिया लगभग उसी प्रकार की है  जिस प्रकार से उपग्रहों रडारों की मदद से बादलों या आँधी तूफानों को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुशार उनके विषय में अंदाजा लगा  लिया जाता है ,कि यदि ये इसी दिशा में इतनी ही गति से आगे बढ़ते रहे तो इतने दिनों में वहाँ पहुँच सकते हैं | उसके आधार पर अंदाजा लगाकर भविष्यवाणी कर दी जाती है | यदि इनकी गति और दिशा में  बदलाव हुआ तो भविष्यवाणी बदल जाती है या गलत निकल जाती है | 

      इस प्रक्रिया में पूर्वानुमान लगाने के नाम पर केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है | जिनके सच निकलने की संभावना जितने प्रतिशत होती है उतने ही प्रतिशत गलत निकलने की भी संभावना होती है | इसमें सच्चाई कितने प्रतिशत होगी कहा जाना कठिन है |

       इस विधा में आज का ट्रेन संचालन देखकर उसी के अनुशार कल परसों आदि के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है |कुछ ट्रेनों में ऐसा अंदाजा सही भी घटित होता है | कुछ ट्रेनों का एक सप्ताह में तीन तीन दिनों के लिए रोड बदल जाता है | उस समय ऐसे अंदाजे गलत निकल  जाते हैं |जिनके लिए हम ट्रेन के रूटपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं | यदि ऐसा न होता तो हम अंदाजा गलत न होता !पहले इसी रूट से  बजे इतनी ही गति से ट्रेन आती थी|आज इस रूट से ट्रेन नहीं आई इसलिए अंदाजा गलत निकल गया|मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के गलत होने पर अक्सर ऐसी बातें सुनी जाती हैं | पहले ऐसा होता था अब वैसा नहीं हुआ| इसलिए हमारी मौसम संबंधी भविष्यवाणी गलत निकल गई | इस बात को कहा इसी प्रकार से जाता है किंतु प्रदर्शित यह किया जाता है कि गलती हमारे पूर्वानुमान लगाने की नहीं अपितु उस घटना की है जो उस प्रकार से नहीं घटित हुई जैसा सोचकर हमने अंदाजा लगाया था|प्राकृतिक घटनाओं के विषय में प्रकृति को अपने अनुशार नहीं चलाया जा सकता है, प्रत्युत प्रकृति के अनुशार चलकर ही हमें प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान करना होगा | 

     इस घटना को समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो यदि  ऐसी घटनाओं की समयसारिणी पता होती तो ट्रेन को प्रत्यक्ष देखे बिना भी यह पता होता कि ट्रेन सप्ताह के किन दिनों में किस रूट से जाएगी | यह सही जानकारी मिल सकती थी | मौसम के क्षेत्र में भी यदि समयसारिणी खोज ली जाए तो ये पहले से पता होता कि पिछले वर्ष इस महीने के इस सप्ताह में इस स्थान पर इतनी बारिश हुई थी अबकी बार उसकी अपेक्षा कब या अधिक बारिश होने की संभावना क्यों है और उसका कारण क्या है | 

     ऐसे पूर्वानुमानों के गलत निकलने का कारण उन घटनाओं से संबंधित समयसारिणी के विषय में जानकारी न होना  होता है ,जबकि अनुसंधान संबंधी ऐसी अपनी गलतियों का दोष उन प्राकृतिक घटनाओं के मत्थे मढ़ा जाता है | ट्रेन संबंधी समय सारिणी पता न होने के कारण हम उसके रूट परिवर्तन को नहीं समझ सके और गलत अंदाजा लगा बैठे वैसा घटित नहीं हुआ तो अपनी कमी न स्वीकार करते हुए इसके लिए ट्रेन के रूटपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में लगाए गए अंदाजे गलत निकल जाने पर जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | महामारी के विषय में ऐसे अंदाजे गलत निकल जाने पर उसके लिए महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | 

    ऐसी घटनाओं में परिवर्तनों का कोई दोष नहीं होता है परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है ! हमारे  साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में वो क्षमता ही नहीं है जिसके आधार पर इसप्रकार के परिवर्तनों को आगे से आगे समझा जा सके और उनके विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके | 

     समयआधारित अनुसंधानों के द्वारा ऐसा किया जा सकता है | समयविज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाए हुए पूर्वानुमान जिसप्रकार से अभी भी सही निकलते हैं|उसीप्रकार  से  उसी समयविज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में,महामारी के विषय में अनुसंधान पूर्वक यदि वह समयसारिणी खोज ली जाती है ,जिसके आधार पर ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं,तो ऐसी घटनाओं के विषय में न केवल सही सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं,अपितु उनके घटित होने के आधारभूत कारण भी खोजने में सफलता मिल सकती है |